Tuesday, September 24, 2024

कार्तिक माहात्म्य - 20

 अध्याय - 20


                   अब राजा पृथु ने पूछा–हे देवर्षि नारद! इसके बाद युद्ध में क्या हुआ तथा वह दैत्य जलन्धर किस प्रकार मारा गया, कृपया मुझे वह कथा सुनाइए।

          नारद जी बोले–जब गिरिजा वहाँ से अदृश्य हो गईं और गन्धर्वी माया भी विलीन हो गई तब भगवान वृषभध्वज चैतन्य हो गये। उन्होंने लौकिकता व्यक्त करते हुए बड़ा क्रोध किया और विस्मितमना जलन्धर से युद्ध करने लगे। जलन्धर शंकर के बाणों को काटने लगा परन्तु जब काट न सका तब उसने उन्हें मोहित करने के लिए माया की पार्वती का निर्माण कर अपने रथ पर बाँध लिया तब अपनी प्रिया पार्वती को इस प्रकार कष्ट में पड़ा देख लौकिक-लीला दिखाते हुए शंकर जी व्याकुल हो गये।

          शंकर जी ने भयंकर रौद्र रूप धारण कर लिया। अब उनके रौद्र रूप को देख कोई भी दैत्य उनके सामने खड़ा होने में समर्थ न हो सका और सब भागने-छिपने लगे। यहाँ तक कि शुम्भ-निशुम्भ भी समर्थ न हो सके। शिवजी ने उन शुम्भ-निशुम्भ को शाप देकर बड़ा धिक्कारा और कहा–तुम दोनो ने मेरा बड़ा अपराध किया है। तुम युद्ध से भागते हो, भागते को मारना पाप है। इससे मैं तुम्हें अब नहीं मारूंगा परन्तु गौरी तुमको अवश्य मारेगी।

          शिवजी के ऎसा कहने पर सागर पुत्र जलन्धर क्रोध से अग्नि के समान प्रज्वलित हो उठा। उसने शिवजी पर घोर बाण बरसाकर धरती पर अन्धकार कर दिया तब उस दैत्य की ऎसी चेष्टा देखकर शंकर जी बड़े क्रोधित हुए तथा उन्होंने अपने चरणांगुष्ठ से बनाये हुए सुदर्शन चक्र को चलाकर उसका सिर काट लिया। एक प्रचण्ड शब्द के साथ उसका सिर पृथ्वी पर गिर पड़ा और अंजन पर्वत के समान उसके शरीर के दो खण्ड हो गये। उसके रुधिर से संग्राम-भूमि व्याप्त हो गई।

          शिवाज्ञा से उसका रक्त और मांस महारौरव में जाकर रक्त का कुण्ड हो गया तथा उसके शरीर का तेज निकलकर शंकर जी में वैसे ही प्रवेश कर गया जैसे वृन्दा का तेज गौरी के शरीर में प्रविष्ट हुआ था। जलन्धर को मरा देख देवता और सब गन्धर्व प्रसन्न हो गये।


🚩जय श्रीराधे कृष्णा🚩


Tuesday, May 7, 2024

सीता राम सीता राम सीताराम कहिये

 सीता राम सीता राम सीताराम कहिये

सीता राम सीता राम सीताराम कहिये

जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिये

जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिये

सीता राम सीता राम सीताराम कहिये

जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिये


मुख में हो राम नाम राम सेवा हाथ में

मुख में हो राम नाम राम सेवा हाथ में

नहिं तू अकेला प्यारे राम तेरे साथ में

विधि का विधान जान

विधि का विधान जान हानि लाभ सहिये

जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिये

सीता राम सीता राम सीताराम कहिये

जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिये


किया अभिमान तो फिर मान नहीं पायेगा

किया अभिमान तो फिर मान नहीं पायेगा

होगा प्यारे वही जो श्री रामजी को भायेगा

फल आशा त्याग शुभ काम करते रहिये

जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिये

सीता राम सीता राम सीताराम कहिये

जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिये


ज़िन्दगी की डोर सौंप हाथ दीनानाथ के

ज़िन्दगी की डोर सौंप हाथ दीनानाथ के

महलों मे राखे चाहे झोंपड़ी मे वास दे

धन्यवाद निर्विवाद

धन्यवाद निर्विवाद राम राम कहिये

जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिये

सीता राम सीता राम सीताराम कहिये

जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिये


आशा एक रामजी से दूजी आशा छोड़ दे

आशा एक रामजी से दूजी आशा छोड़ दे

नाता एक रामजी से दूजा नाते तोड़ दे

साधु संग राम रंग अंग अंग रंगिये

जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिये

सीता राम सीता राम सीताराम कहिये

जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिये







Bhajan:  सीताराम सीताराम सीताराम कहिए || SitaRam SitaRam, SitaRam Kahiye 

Bhajan by: Pujya Rajan Jee