II रामायण की सर्वश्रेष्ठ दस (10) चौपाई अर्थ सहित, रामायण की सिद्ध चौपाई II
1. मंगल भवन अमंगल हारी
द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी॥ 1॥
भावार्थ:- जो मंगल करने वाले और अमंगल को दूर करने वाले हैं, वो दशरथ नंदन श्री राम हैं वो मुझपर अपनी कृपा करें।॥ 1॥
॥जय श्री राम॥
2. होइहि सोइ जो राम रचि राखा।
को करि तर्क बढ़ावै साखा॥ 2॥
भावार्थ:- जो भगवान श्रीराम ने पहले से ही रच रखा है, वही होगा। तुम्हारे कुछ करने से वो बदल नहीं सकता।। 2॥
॥जय श्री राम॥
3. हो धीरज धरम मित्र अरु नारी
आपद काल परखिये चारी॥ 3॥
भावार्थ:- बुरे समय में यह चार चीजे हमेशा परखी जाती हैं, धैर्य, मित्र, पत्नी और धर्म। ॥ 3॥
॥जय श्री राम॥
4. जेहिके जेहि पर सत्य सनेहू
सो तेहि मिलय न कछु सन्देहू॥ 4॥
भावार्थ:- सत्य को कोई छिपा नहीं सकता, सत्य का सूर्य उदय जरूर होता है। ॥ 4॥
॥जय श्री राम॥
5. हो, जाकी रही भावना जैसी
प्रभु मूरति देखी तिन तैसी॥ 5॥
भावार्थ:- जिनकी जैसी प्रभु के लिए भावना है, उन्हें प्रभु उसकी रूप में दिखाई देते हैं। ॥ 5॥
॥जय श्री राम॥
6. रघुकुल रीत सदा चली आई
प्राण जाए पर वचन न जाई॥ 6॥
भावार्थ:- रघुकुल परम्परा में हमेशा वचनों को प्राणों से ज्यादा महत्त्व दिया गया है। ॥ 6॥
॥जय श्री राम॥
7. हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता
कहहि सुनहि बहुविधि सब संता॥ 7॥
भावार्थ:- प्रभु श्रीराम भी अनंत हो और उनकी कीर्ति भी अपरम्पार है, इसका कोई अंत नहीं है। बहुत सारे संतो ने प्रभु की कीर्ति का अलग-अलग वर्णन किया है। ॥ 7॥
॥जय श्री राम॥
❗रामायण की ज्ञानवर्धक चौपाई❗
8. बंदऊँ गुरु पद पदुम परागा।
सुरूचि सुबास सरस अनुरागा॥
अमिअ मूरिमय चूरन चारु।
समन सकल भव रूज परिवारू॥ 8॥
भावार्थ:- मैं गुरु महाराज के चरण कमलों की रज की वन्दना करता हूं, जो सुरुचि (सुंदर स्वाद) सुगंध तथा अनुराग रूपी रस से पूर्ण है। वह अमर मुल (संजीवनी जड़ी) का सुंदर चूर्ण है, जो सम्पूर्ण भव रोगों के परिवार को नाश करने वाला है। ॥ 8॥
॥जय श्री राम॥
9. सुकृति संभु तन बिमल बिभूती।
मंजुल मंगल मोद प्रसूती॥
जन मन मंजु मुकुर मल हरनी।
किएँ तिलक गुन गन बस करनी॥ 9॥
भावार्थ:- वह रज सुकृति (पुण्यवान् पुरुष) रूपी शिवजी के शरीर पर सुशोभित निर्मल विभूति है और सुंदर कल्याण और आनन्द की जननी है, भक्त के मन रूपी सुंदर दर्पण के मैल को दूर करने वाली और तिलक करने से गुणों के समूह को वश में करने वाली है। ॥ 9॥
॥जय श्री राम॥
10. श्री गुर पद नख मनि गन जोति।
सुमिरत दिब्य दृष्टि हियँ होती॥
दलन मोह तन सो सप्रकासू।
बड़े भाग उर आवइ जासू॥ 10॥
भावार्थ:- श्री गुरु महाराज के चरण-नखों की ज्योति मणियों के प्रकाश के समान है, जिसके स्मरण करते ही हृदय में दिव्य दृष्टि उत्पन्न हो जाती है। वह प्रकाश अज्ञान रूपी अंधकार का नाश करने वाला है, वह जिसके हृदय में आ जाता है, उसके बड़े भाग्य हैं। ॥ 10॥
॥जय श्री राम॥