एक समय नैमिषारण्य तीर्थ में शौनकादि अठासी हजार ऋषियों ने सूत जी से पूछा-' हे प्रभु! इस कलियुग में वेद-विद्या रहित मनुष्यों को प्रभु भक्ति किस प्रकार मिलेगी तथा उनका उद्धार कैसे होगा? हे मुनि श्रेष्ठ! कोई ऐसा तप कहिए जिससे थोड़े समय में पुण्य प्राप्त होवे तथा मनवांछित फल मिले, ऐसी कथा सुनने की हमारी इच्छा है। सर्वशास्त्रज्ञाता श्री सूतजी बोले-' हे वैष्णवों में पूज्य! आप सबने प्राणियों के हित कौ बात पूछी है। अब मैं उस श्रेष्ठ व्रत को आप लोगों से कहूँगा, जिस व्रत को नारदजी ने लक्ष्मी नारायण भगवान से पूछा था और लक्ष्मीपति ने मुनिश्रेष्ठ नारदजी से कहा था, सो ध्यान से सुनो -
एक समय योगीराज नारदजी दूसरों के हित की इच्छा से अनेक लोकों में घूमते हुए मृत्यलो क में आ पहुंचे । यहाँ अनेक योनियों में जन्मे हुए प्राय: सभी मनुष्यों अपने कर्मों के अनुसार अनेकों दुखों से पीड़ित देखा कर सोचा,किस यत्न के करने से निश्चय ही प्राणियों के दुखों क का नाश हो सकेगा। ऐसा मन में सोचकर विष्णुलोक को गये। वहाँ एवेत वर्ण और चार भुजाओं वाले देवों के ईश नारायण को देख कर , जिनके हाथों में शंख , चक्र , गदा ,और पदम् थे तथा वरमाला पहने हुए थे, स्तुति करने लगे-"हे भगवन !अत्यन्त शक्ति से सम्पन्न हैं। मन तथा वाणी भी आपको नहीं पा सकती ,आपका आदि-मध्य-अन्त भी नहीं है। आप निर्गुण स्वरूप, सृष्टि के आदि भूत व भक्तों के दुखों को नष्ट करने वाले हो। आपको मेरा नमस्कार है। '' नारदजी से इस प्रकार की स्तुति सुनकर विष्णु भगवान् बोले- हे मुनिश्रेष्ठ! आपके मन में क्या है? आपका किस काम के लिये आगमन हुआ है नि:संकोच कहें |
तब नारद मुनिबोले -' ' मृत्युलोक में सब मनुष्य जो अनेक योनियों में पैदा हुए हैं. अपने-अपने कर्मों के द्वारा अनेक प्रकार के मे दुखों से दुखी हो रहे हैं। हे नाथ! यदि आप मुझ पर दया रखते हो तो तो बतलाइये कि उन मनष्यों के सब दुःख थोड़े से ही प्रयत्न से कैसे दूर हो सकते है?" श्री विष्णु भगवान् जी बोले- " हे नारद! मनुष्यों की भलाई के लिए बहुत ही अच्छी बात पूछी है | जिस काम के करने से मनुष्य मोह से छूट जाता है वह में कहता हूँ, सुनो- बहुत पुण्य देने वाला, स्वर्ग तथा मृत्यलोक दोनों में दुर्लभ एक उत्तम व्रत है। आज मैं प्रेमवश हो कर तुमसे कहता हूँ | श्री सत्यनारायण भगवान् का यह व्रत अच्छी तरह विधि पूर्वक करके मनुष्य धरती पर आयुपर्यन्त सुख भोगकर मरने पर मोक्ष को गे प्राप्त होता है |" श्री भगवान् के वचन सुनकर नारद मुनि बोले -,"हे भगवान ! उस व्रत का फल क्या है , क्या विधान है और किसने यह व्रत है और किस दिन यह व्रत करना चाहिए ? विस्तार से कहिये |"
विष्णु भगवान् बोले -" हे नारद ! दुःख शोक आदि को दूर करने वाला , धन - धान्य को बढ़ाने वाला ,सौभाग्य तथा संतान को देने वाला यह व्रत सब स्थानों पर विजयी करने वाला है | भक्ति और श्रद्धा के साथ किसी भी दिन मनुष्य श्री सत्यनारायण की प्रात: काल के समय ब्राह्मणों और बंधुओ के साथ धर्म परायण होकर पूजा करें | भक्ति भाव से नैवेद्य , केले का फल, शहद , घी , दूध और गेहूँ का आटा सवाया लेवे | ( गेहूँ के आभाव में साठी का चूर्ण ले सकते है |) और सब पदार्थों को भगवान् के अर्पण कर दे तथा बंधुओ सहित ब्राह्मणों को भोजन करवाएं , पश्चात स्वयं भोजन करें | रात्रि में नृतय ,संगीत आदि का आयोजन कर सत्यनारायण भगवान् का स्मरण करते हुए समय व्यतीत करें | इस तरह व्रत करने पर मनुष्य की इच्छा निश्चय पूरी होती है | विशेष रूप से कलि - काल में भूमि पर वही एक मोक्ष का सरल उपाय है |
|| बोलो श्री सत्यनारायण भगवान् की जय ||
|| इति श्री सत्यनारायण व्रत कथा ||