Tuesday, June 28, 2011

Swarag ki Sidhi

  •  मारना चाहते हो तो बुरी इच्छाओं  को  मरो |
  • जितना चाहते हो तो क्रोध और त्रिछ्नाओं को जीतो |
  • खांना चाहते हो तो क्रोध को खाओ |
  • पीना चाहते हो तो इश्वर भक्ति का शर्बत पीओ |
  • पहिनना चाहते हो तो नेकी का जामा पहनो |
  • देना चाहते हो तो नीची निगाह करके दो और भूल जाओ |
  • लेना चाहते हो तो माता पिता और गुरु का आशीर्वाद लो |
  • जाना चाहते हो तो सत्संगों एवं स्वास्थ्यप्रद स्थानों पर जाओ |
  • आना चाहते हो तो दुखियों की सहायता को आओ |
  • छोड़ना चाहते हो तो पाप, घमण्ड और अत्याचार  को छोड़ो |
  • बोलना चाहते हो तो सत्य और मीठे वचन बोलो |
  • बनाना चाहते हो तो धर्मशाला, पाठशाला, कुएँ और तलाब बनाओ |
  • खरीदना चाहते हो तो प्रेम का सोदा खरीदो |
  • तोलना चाहते हो तोबात को तोलो |
  • देखना चाहते हो तो अपनी बुराई को देखो |
  • सुनना चाहते हो तो इश्वर की प्रशंसा और दुखियों की पुकार को सुनो |
  • भागना चाहते हो तो पराई निन्दा और पराई  स्त्रियों से भागो |
नोट :  यदि इतने कामों से सुख, शांति और अन्त में स्वर्ग न मिले तो भगवान के दरबार में अपील कीजिए \ आपकी अवश्य जीत होगी ||

Monday, June 27, 2011

Geeta Saar

Shri Krishan Give Geeta Saar to Arjun:
  •  क्यों व्यर्थ चिन्ता करते हो ?  किससे व्यर्थ डरते हो ? कौन तुम्हे मार सकता है  ? आत्मा न पैदा होती है न मरती है |
  •  जो हुआ, वो अच्छा हुआ, जो हो रहा है , वो अच्छा हो रहा है | जो होगा अच्छा होगा, वो भी अच्छा होगा | तुम भूत का पश्चाताप न करो | भविष्य की चिन्ता न करो | वर्तमान चल रहा है |
  • तुम्हारा क्या गया , जो तुम रोते हो ? तुम क्या लाये थे, जो तुमने खो दिया ? तुमने क्या पैदा किया था , जो नाश हो गया ? न तुम कुछ लेकर आये , जो लिया यहीं से लिया , जो दिया यही से दिया | जो लिया इसी (भगवान) से लिया | जो दिया , इसी को दिया | खाली हाथ आए , खाली हाथ चले | जो आज तुम्हारा है वो कल किसी और का था ,परसों किसी और का होगा | तुम इसे अपना समझ कर मग्न हो रहे हो | बस यह प्रसंता ही तुम्हारे दुखों  का कारण है |
  • परिवर्तन ही संसार का नियम है | जिसे तुम मृत्यु समझते हो , वही तो जीवन है | एक छण में तुम करोड़ो के स्वामी बन जाते हो, दुसरे ही छण दरिद्र हो जाते हो | मेरा - तेरा , छोटा - बड़ा , अपना - पराया मन से मिटा दो , विचार से हटा दो , फिर अब तुम्हारा है, तुम सबके हो |
  • न यह शरीर तुम्हारा है , न तुम शरीर के हो | यह अग्नि , वायु , पृथ्वी , आकाश से बना है और इसी में मिल जायेगा | परन्तु आत्मा स्थिर है , फिर तुम क्या हो ?तुम अपने आपको भगवान को अर्पित करो | यह सब से उत्तम सहारा है | जो इसके सहारे को जानता है , वह भय , चिन्ता शोक से सर्वदा मुक्त है |
  • जो कुछ तू करता है , उसे भगवान को अर्पण करता चल | इसी में तू सदा जीवन मुक्त अनुभव करेगा ||