Monday, July 26, 2021

Shri SatyanarayanVarat Katha(श्री सत्यनारायण व्रत कथा)

  



            एक समय नैमिषारण्य तीर्थ में शौनकादि अठासी हजार ऋषियों ने सूत जी से पूछा-' हे प्रभु! इस कलियुग में वेद-विद्या रहित मनुष्यों को प्रभु भक्ति किस प्रकार मिलेगी तथा उनका उद्धार कैसे होगा? हे मुनि श्रेष्ठ! कोई ऐसा तप कहिए जिससे थोड़े समय में पुण्य प्राप्त होवे तथा मनवांछित फल मिले, ऐसी कथा सुनने की हमारी इच्छा है। सर्वशास्त्रज्ञाता श्री सूतजी बोले-' हे वैष्णवों में पूज्य! आप सबने प्राणियों के हित कौ बात पूछी है। अब मैं उस श्रेष्ठ व्रत को आप लोगों से कहूँगा, जिस व्रत को नारदजी ने लक्ष्मी नारायण भगवान से पूछा था और लक्ष्मीपति ने मुनिश्रेष्ठ नारदजी से कहा था, सो ध्यान से सुनो  - 

            एक समय योगीराज नारदजी दूसरों के हित की इच्छा से अनेक लोकों में घूमते हुए मृत्यलो क में आ पहुंचे । यहाँ अनेक योनियों में जन्मे हुए प्राय: सभी  मनुष्यों अपने कर्मों के अनुसार अनेकों दुखों से पीड़ित देखा कर सोचा,किस यत्न के करने से निश्चय ही प्राणियों के दुखों क का नाश हो सकेगा। ऐसा मन में सोचकर विष्णुलोक को गये। वहाँ एवेत वर्ण और चार भुजाओं वाले देवों के ईश नारायण को देख कर , जिनके हाथों में शंख , चक्र , गदा ,और पदम् थे तथा वरमाला पहने हुए थे, स्तुति करने लगे-"हे भगवन !अत्यन्त शक्ति से सम्पन्न हैं। मन तथा वाणी भी आपको नहीं पा सकती ,आपका आदि-मध्य-अन्त भी नहीं है। आप निर्गुण स्वरूप, सृष्टि के आदि भूत व भक्तों के दुखों को नष्ट करने वाले हो। आपको मेरा नमस्कार है। '' नारदजी से इस प्रकार की स्तुति सुनकर विष्णु भगवान् बोले- हे मुनिश्रेष्ठ! आपके मन में क्या है? आपका किस काम के लिये आगमन हुआ है  नि:संकोच कहें | 

            तब नारद मुनिबोले -' ' मृत्युलोक में सब मनुष्य जो अनेक योनियों में पैदा हुए हैं. अपने-अपने कर्मों के द्वारा अनेक प्रकार के मे दुखों से दुखी हो रहे हैं। हे नाथ! यदि आप मुझ पर दया रखते हो तो तो बतलाइये कि उन मनष्यों के सब दुःख थोड़े से ही प्रयत्न से कैसे दूर हो सकते है?" श्री विष्णु भगवान् जी बोले- " हे नारद! मनुष्यों की भलाई के लिए बहुत ही अच्छी बात पूछी है | जिस काम के करने से मनुष्य मोह से छूट जाता है वह में कहता हूँ, सुनो- बहुत पुण्य देने वाला, स्वर्ग तथा मृत्यलोक दोनों में दुर्लभ एक उत्तम व्रत है। आज मैं प्रेमवश हो कर तुमसे कहता हूँ | श्री सत्यनारायण भगवान् का यह व्रत अच्छी तरह विधि पूर्वक करके मनुष्य धरती पर आयुपर्यन्त सुख भोगकर मरने पर मोक्ष को गे प्राप्त होता है |" श्री भगवान् के वचन सुनकर नारद मुनि बोले -,"हे भगवान ! उस व्रत का फल क्या है , क्या विधान है और किसने यह व्रत  है और किस दिन यह व्रत करना चाहिए ? विस्तार से कहिये |" 

                विष्णु भगवान् बोले -" हे नारद ! दुःख शोक आदि को दूर करने वाला , धन - धान्य को बढ़ाने वाला ,सौभाग्य तथा संतान को देने वाला यह व्रत सब स्थानों पर विजयी करने वाला है | भक्ति और श्रद्धा के साथ किसी भी दिन मनुष्य श्री सत्यनारायण की  प्रात: काल के समय ब्राह्मणों और बंधुओ के साथ धर्म परायण होकर पूजा करें | भक्ति भाव से नैवेद्य , केले का फल, शहद , घी , दूध और गेहूँ का आटा सवाया लेवे | ( गेहूँ  के आभाव में साठी का चूर्ण ले सकते है |) और सब पदार्थों को भगवान् के अर्पण कर दे तथा  बंधुओ  सहित ब्राह्मणों को भोजन करवाएं , पश्चात स्वयं भोजन करें | रात्रि में नृतय ,संगीत आदि का आयोजन कर सत्यनारायण भगवान् का स्मरण करते हुए समय व्यतीत करें | इस तरह व्रत करने पर मनुष्य की इच्छा निश्चय पूरी होती है | विशेष रूप से कलि - काल में भूमि पर वही एक मोक्ष का सरल उपाय है | 

|| बोलो श्री सत्यनारायण भगवान् की जय || 

|| इति श्री सत्यनारायण व्रत कथा || 

Friday, July 23, 2021

Margsheersh Shukalpaksh "Moksha" Ekadashi Mhatamye (मार्गशीर्ष शुक्लपक्षकी “मोक्षा' एकादशीका माहात्म्य)

 



युधिष्ठिर बोले-- देवदेवेश्वर! मैं पूछता हूँ ," मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष में जो एकादशी होती है उसका क्या नाम है ? कौन  सी व्रत विधि है तथा इस में किस देवता का पूजन किया जाता है ?" स्वामिन ! यह सब यथार्थ रूप से बताइये | 

श्री कृष्ण ने कहा ,''  मार्गशीर्षमसके कृष्ण पक्ष की "उत्पत्ति" (उत्तपन्ना ) नाम की एकादशी होती है जिसका वर्णन मैंने तुम्हारे समक्ष कर दिया है | अब शुक्लपक्षकी एकादशी का वर्णन करूंगा , जिसके श्रवणमात्रसे वाजपेय- यज्ञका फल मिलता है |  उसका नाम है-- 'मोक्षा' एकादशी , जो सब पापों का अपहरण करने वाली है | राजन्‌! उस दिन यत्नपूर्वक तुलसीकी मंजरी तथा धूप-दीपादिसे भगवान्‌ दामोदरका पूजन करना चाहिये। पूर्वोक्त विधिसे ही दशमी और एकादशीके नियमका पालन करना उचित है। मोक्षा एकादशी बड़े-बड़े पातकोंका नाश करनेवाली है।उस दिन रात्रि में मेरी प्रसन्‍नताके लिये नृत्य, गीत और स्तुतिके द्वारा जागरण करना चाहिये। जिसके पितर पापवश नीच योनिमें पड़े हों, वे इसका पुण्य-दान करनेसे मोक्षको प्राप्त होते हैं। इसमें तनिक भी संदेह नहीं है। पूर्वकालकी बात है, वैष्णवों से विभूषित परम रमणीय चम्पक नगरमें वैखानस नामक राजा रहते थे। वे अपनी प्रजाका पुत्रकी भाँति पालन करते थे। इस प्रकार राज्य करते हुए राजाने एक दिन रातको स्वप्ममें अपने पितरोंको नीच योनि में पड़ा हुआ देखा। उन सबको इस अवस्थामें देखकर राजाके मनमें बड़ा विस्मय हुआ और प्रातःकाल ब्राह्मणोंसे उन्होंने उस स्वप्न का सारा हाल कह सुनाया।

 राजा बोले- ब्राह्मणो! मैंने अपने पितरोंको नरकमें  गिरा देखा है। वे बारम्बार रोते हुए मुझसे यों कह रहे थे कि ' तुम हमारे तनुज हो, इसलिये इस नरक-समुद्रसे हमलोगोंका उद्धार करो।' द्विजवरो! इस रूपमें मुझे पितरोंके दर्शन हुए हैं। इससे मुझे चैन नहीं मिलता। क्या करूँ, कहाँ जाऊँ? मेरा हृदय रुँधा जा रहा है। द्विजोत्तमो! वह व्रत, वह तप और वह योग, जिससे तत्काल नरकसे छुटकारा पा जाये, बतानेकी कृपा करें | मुझ बलवान एवं साहसी पुत्रके जीते-जी मेरे माता-पिता घोर नरक में पड़े हुए हैं अतः ऐसे पुत्रसे क्या लाभ है।

ब्राह्मण बोले-- राजन! यहाँसे निकट ही पर्वत मुनि का महान आश्रम है | वे भूत और भविष्य के भी ज्ञाता हैं | नृपश्रेष्ठ ! आप उनके पास चले जाइये | 

    ब्राह्मणो की बात सुनकर महाराज वैखानस शीघ्र ही पर्वत मुनि के आश्रम पर गए और वहाँ उन मुनिश्रेष्ठ को देखकर उन्होंने दण्डवत्‌-प्रणाम करके मुनिके चरणोंका स्पर्श किया। मुनिने भी राजासे राज्यके सातों अंगोंकी कुशल पूछी।

राजा बोले-- स्वामिन्‌! आपकी कृपासे मेरे राज्यके सातों अंग सकुशल हैं। कल मैंने स्वप्ममें देखा है कि मेरे पितर नरकमें पड़े है | अतः बताइए किस पुण्यके प्रभावसे उनका वहाँसे छुटकारा होगा ? 

       राजा  सुन कर मुनि श्रेष्ठ पर्वत एक मुहूर्त तक ध्यानस्थ रहे। इसके बाद वे राजासे बोले--" महाराज! मार्गशीर्षमासके शुक्लपक्षमें जो 'मोक्षा' नामकी एकादशी होती है, तुम सब लोग उसका व्रत करो और उसका पुण्य पितरोंको दे डालो। उस पुण्यके प्रभावसे उनका नरकसे उद्धार हो जायगा | "

    भगवान्‌ श्रीकृष्ण कहते हैं-- युधिष्ठिर! मुनिकी यह बात सनकर राजा पुनः अपने घर लौट आये। जब उत्तम मार्गशीर्षमास आया, तब राजा वैखानसने मुनिके कथनानुसार 'मोक्षा' एकादशीका  व्रत करके उसका पुण्य समस्त पितरो सहित पिता को दे दिया। पुण्य देते ही क्षणभरमें आकाशसे फूलोंकी वर्षा होने लगी।बैखानस के पिता पितरोंसहित नरकसे छुटकारा पा गये और आकाशमें आकर राजाके प्रति यह पवित्र वचन बोले-- बेटा! तुम्हारा कल्याण हो।' यह कहकर वे स्वार्गमें चले गये। राजन!जो इस प्रकार कल्याणमयी 'मोक्षा' एकादशीका व्रत करता है, उसके पाप नष्ट हो जाते हैं और मरनेके बाद वह मोक्ष प्राप्त कर लेता है। यह मोक्ष देनेवाली 'मोक्षा' एकादशी मनुष्योंके लिये चिन्तामणिके समान समस्त कामनाओंको पूर्ण करनेवाली है। इस महात्मय के पढ़ने और सुननेसे वाजपेय-यज्ञका फल मिलता है।

            || इति श्री मार्गशीर्ष शुक्लपक्षकी “मोक्षा' एकादशीका महात्मय ||