Sunday, October 13, 2024

ਮਾਂ ਤੇਰੀਆਂ ਚੁੰਨੀਆਂ ਲਾਲ ਲਾਲ, ਤੇਰੇ ਸੋਹਣੇ ਝੰਡੇ ਲਾਲ

 

ਮਾਂ ਤੇਰੀਆਂ ਚੁੰਨੀਆਂ ਲਾਲ ਲਾਲ, ਤੇਰੇ ਸੋਹਣੇ ਝੰਡੇ ਲਾਲ 

ਮਾਂ ਤੇਰੀਆਂ ਚੁੰਨੀਆਂ ਲਾਲ ਲਾਲ, ਤੇਰੇ ਸੋਹਣੇ ਝੰਡੇ ਲਾਲ ।

ਮਾਂ ਲਾਲਾਂ ਵਿੱਚ ਹੀ ਵਸਦੀ ਹੈ, ਤੂੰ ਲਾਲਾਂ ਦੀ ਲੱਜ ਪਾਲ ॥

ਤੈਨੂੰ ਸੂਰਜ ਸੁਬਾਹ ਸਲਾਮ ਕਰੇ, ਤੇਰੀ ਪੂਜਾ ਕਰਦੇ ਚੰਨ ਤਾਰੇ ।

ਕੰਨਾਂ ਵਿੱਚ ਮਿਸ਼ਰੀ ਘੁਲ ਜਾਂਦੀ, ਜਦ ਲਾਲ ਬੋਲਦੇ ਜੈਕਾਰੇ ॥

ਭਵਨਾ ਦੀ ਰੰਗਤ ਲਾਲ ਲਾਲ, ਲਾਇਨਾ ਵਿੱਚ ਸੰਗਤ ਲਾਲ ।

ਫਿਰ ਭਗਤ ਧਮਾਲਾਂ ਪਾਂਦੇ ਨੇ, ਜਦ ਵਜੇ ਢੋਲ ਤੇ ਤਾਲ

ਲਾਲਾਂ ਦੇ ਗਲ ਵਿੱਚ ਸਜਦੇ ਮਾਂ, ਤੇਰੇ ਲਾਲ ਗਲਾਂ ਵਿੱਚ ਅਡੇ ਮਾਂ ।

ਤੇਰੀ ਜੋਤ ਦੀ ਲਾਲੀ ਐਸੀ ਮਾਂ, ਜਨਮਾਂ ਦੇ ਬੰਧਨ ਕਟੇ ਮਾਂ ॥

ਰੰਗ ਮੋਲਿ ਦਾ ਵੀ ਲਾਲ ਲਾਲ, ਰੰਗ ਰੋਲੀ ਦਾ ਵੀ ਲਾਲ ।

ਇਸ ਲਾਲੀ ਵਿੱਚ ਜੋ ਰੰਗਿਆ ਏ ਫਿਰ ਹੋ ਗਿਆ ਲਾਲੋ ਲਾਲ ॥

ਮਾਂ ਤੇਰੇਆ ਪਾਵਨ ਹੱਥਾਂ ਤੇ ਏਹ ਲਾਲ ਲਾਲ ਜੋ ਮੇਹੰਦੀ ਏ ।

ਗੱਲ ਦਿਲ ਵਿੱਚ ਹੋਵੇ ਲਾਲਾਂ ਦੇ, ਏਹ ਸਬ ਆਪੇ ਬੁੱਝ ਲੈਂਦੀ ਏ ॥

ਬਾਵਾ ਵਿੱਚ ਚੂੜਾ ਲਾਲ ਲਾਲ, ਰੰਗ ਜਚਦਾ ਗੂੜਾ ਲਾਲ ।

ਕਰ ਮੇਹਰ ਸੰਜੀਵ ਸਰਦੂਲ ਉੱਤੇ, ਆਵਾਂਗੇ ਹਰ ਸਾਲ ॥



Bhajan:    De Charna Da Pyar
Singer:    Sardool Sikander
Producer:  Jaidev

Provided to YouTube by Super Cassettes Industries Private Limited


Friday, October 11, 2024

कार्तिक माहात्म्य --35


अध्याय–35 (अन्तिम)

          

          इतनी कथा सुनकर सभी ऋषि सूतजी से बोले–‘हे सूतजी! अब आप हमें तुलसी विवाह की विधि बताइए।’ 

          सूतजी बोले–‘कार्तिक शुक्ला नवमी को द्वापर युग का आरम्भ हुआ है। अत: यह तिथि दान और उपवास में क्रमश: पूर्वाह्नव्यापिनी तथा पराह्नव्यापिनी हो तो ग्राह्य है। इस तिथि को, नवमी से एकादशी तक, मनुष्य शास्त्रोक्त विधि से तुलसी के विवाह का उत्सव करे तो उसे कन्यादान का फल प्राप्त होता है। पूर्वकाल में कनक की पुत्री किशोरी ने एकादशी तिथि में सन्ध्या के समय तुलसी की वैवाहिक विधि सम्पन्न की। इससे वह किशोरी वैधव्य दोष से मुक्त हो गई।

          अब मैं उसकी विधि बतलाता हूँ–एक तोला सुवर्ण की भगवान विष्णु की सुन्दर प्रतिमा तैयार कराए अथवा अपनी शक्ति के अनुसार आधे या चौथाई तोले की ही प्रतिमा बनवा ले, फिर तुलसी और भगवान विष्णु की प्रतिमा में प्राण-प्रतिष्ठा कर के षोडशोपचार से पूजा करें। पहले देश-काल का स्मरण कर के गणेश पूजन करें फिर पुण्याहवाचन कराकर नान्दी श्राद्ध करें। तत्पश्चात वेद-मन्त्रों के उच्चारण और बाजे आदि की ध्वनि के साथ भगवान विष्णु की प्रतिमा को तुलसी जी के निकट लाकर रखें। प्रतिमा को वस्त्रों से आच्छादित करना चाहिए। उस समय भगवान का आवाहन करें–

          ‘भगवान केशव! आइए, देव! मैं आपकी पूजा करुंगा। आपकी सेवा में तुलसी को समर्पित करुंगा। आप मेरे सम्पूर्ण मनोरथों को पूर्ण करें।’

          इस प्रकार आवाहन के पश्चात तीन-तीन बार अर्ध्य, पाद्य और विष्टर का उच्चारण कर के इन्हें बारी-बारी से भगवान को समर्पित करें, फिर आचमनीय पद का तीन बार उच्चारण कर के भगवान को आचमन कराएँ। इसके बाद कांस्य के बर्तन में दही, घी और मधु(शहद) रखकर उसे कांस्य के पात्र से ही ढक दें तथा भगवान को अर्पण करते हुए इस प्रकार कहें–वासुदेव! आपको नमस्कार है, यह मधुपर्क (दही, घी तथा शहद के मिश्रण को मधुपर्क कहते हैं) ग्रहण कीजिए।

          तदनन्तर हरिद्रालेपन और अभ्यंग-कार्य सम्पन्न कर के गौधूलि की वेला में तुलसी और विष्णु का पूजन पृथक-पृथक करना चाहिए। दोनों को एक-दूसरे के सम्मुख रखकर मंगल पाठ करें। जब भगवान सूर्य कुछ-कुछ दिखाई देते हों तब कन्यादान का संकल्प करें। अपने गोत्र और प्रवर का उच्चारण कर के आदि की तीन पीढ़ियों का भी आवर्तन करें। 

          तत्पश्चात भगवान से इस प्रकार कहें–‘आदि, मध्य और अन्त से रहित त्रिभुवन-प्रतिपालक परमेश्वर! इस तुलसी दल को आप विवाह की विधि से ग्रहण करें। यह पार्वती के बीज से प्रकट हुई है, वृन्दा की भस्म में स्थित रही है तथा आदि, मध्य और अन्त से शून्य है, आपको तुलसी बहुत ही प्रिय है, अत: इसे मैं आपकी सेवा में अर्पित करता हूँ। मैंने जल के घड़ो से सींचकर और अन्य प्रकार की सेवाएँ कर के अपनी पुत्री की भाँति इसे पाला, पोसा और बढ़ाया है, आपकी प्रिया तुलसी मैं आपको दे रहा हूँ। प्रभो! आप इसे ग्रहण करें।’

          इस प्रकार तुलसी का दान कर के फिर उन दोनों अर्थात तुलसी और भगवान विष्णु की पूजा करें, विवाह का उत्सव मनाएँ। सुबह होने पर पुन: तुलसी और विष्णु जी का पूजन करें। अग्नि की स्थापना कर के उसमें द्वादशाक्षर मन्त्र से खीर, घी, मधु और तिलमिश्रित हवनीय द्रव्य की एक सौ आठ आहुति दें फिर ‘स्विष्टकृत’ होमक कर के पूर्णाहुति दें। उसके बाद भगवान से इस प्रकार प्रार्थना करें–‘हे प्रभो! आपकी प्रसन्नता के लिए मैंने यह व्रत किया है। जनार्दन इसमें जो न्यूनता हो वह आपके प्रसाद से पूर्णता को प्राप्त हो जाये।’

          यदि द्वादशी में रेवती का चौथा चरण बीत रहा हो तो उस समय पारण न करें। जो उस समय भी पारण करता है वह अपने व्रत को निष्फल कर देता है। भोजन के पश्चात तुलसी के स्वत: गलकर गिरे हुए पत्तों को खाकर मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता है। भोजन के अन्त में ऊख, आंवला और बेर का फल खा लेने से उच्छिष्ट-दोष मिट जाता है।

          तदनन्तर भगवान का विसर्जन करते हुए कहे–‘भगवन! आप तुलसी के साथ वैकुण्ठधाम में पधारें। प्रभो! मेरे द्वारा की हुई पूजा ग्रहण करके आप सदैव सन्तुष्टि करें।’ इस प्रकार देवेश्वर विष्णु का विसर्जन कर के मूर्त्ति आदि सब सामग्री आचार्य को अर्पण करें। इससे मनुष्य कृतार्थ हो जाता है।

          यह विधि सुनाकर सूतजी ने ऋषियों से कहा–‘हे ऋषियों! इस प्रकार जो मनुष्य श्रद्धापूर्वक सत्य, शान्ति और सन्तोष को धारण करता है, भगवान विष्णु को तुलसीदल समर्पित करता है, उसके सभी पापों का नाश हो जाता है और वह संसार के सुखों को भोगकर अन्त में विष्णुलोक को प्राप्त करता है।

          हे ऋषिवरों! यह कार्तिक माहात्म्य सब रोगों और सम्पूर्ण पापों का नाश करने वाला है। जो मनुष्य इस माहात्म्य को भक्तिपूर्वक पढ़ता है और जो सुनकर धारण करता है वह सब पापों से मुक्त हो भगवान विष्णु के लोक में जाता है। सभी भक्तों ने पूरे महीने कार्तिक महात्म्य सुना ,दक्षिणा स्वरूप एक बार अपने ग्रुप पर जय श्रीराधे कृष्णा जरूर लिखें🙏जिसकी बुद्धि खोटी हो तथा जो श्रद्धा से हीन हो ऐसे किसी भी मनुष्य को यह माहात्म्य नहीं सुनाना चाहिए।

                         

 –:इति श्री कार्तिक मास माहात्म्य:–


🚩जय श्रीराधे कृष्णा🚩