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Thursday, February 1, 2024

कार्तिक माहात्म्य--12


अध्याय - 12

          

          नारद जी ने कहा – तब इन्द्रादिक देवता वहाँ से भय-कम्पित होकर भागते-भागते बैकुण्ठ में विष्णु जी के पास पहुंचे। देवताओं ने अपनी रक्षा के लिए उनकी स्तुति की। देवताओं की उस दीन वाणी को सुनकर करुणा सागर भगवान विष्णु ने उनसे कहा कि हे देवताओं! तुम भय को त्याग दो। मैं युद्ध में शीघ्र ही जलन्धर को देखूंगा।

ऎसा कहते ही भगवान गरुड़ पर जा बैठे तब सनुद्र-तनया लक्ष्मी जी ने कहा कि हे नाथ! यदि मैं सर्वदा आपकी प्रिया और भक्ता हूँ तो मेरा भाई आप द्वारा युद्ध में नहीं मारा जाना चाहिए।

          इस पर विष्णु जी ने कहा – अच्छा, यदि तुम्हारी ऎसी ही प्रीति है तो मैं उसे अपने हाथों से नहीं मारूंगा परन्तु युद्ध में अवश्य जाऊँगा क्योंकि देवताओं ने मेरी बड़ी स्तुति की है।

          ऎसा कह भगवान विष्णु युद्ध के उस स्थान में जा पहुंचे जहाँ जलन्धर विद्यमान था। जलन्धर और विष्णु का घोर युद्ध हुआ। विष्णु के तेज से कम्पित देवता सिंहनाद करने लगे फिर तो अरुण के अनुज गरुड़ के पंखों की प्रबल वायु से पीड़ित हो दैत्य इस प्रकार घूमने लगे जैसे आँधी से बादल आकाश में घूमते हैं तब अपने वीर दैत्यों को पीड़ित होते देखकर जलन्धर ने क्रुद्ध हो विष्णु जी को उद्धत वचन कहकर उन पर कठोर आक्रमण कर दिया।

क्रमश:


🚩जय श्रीराधे कृष्णा🚩


Friday, January 26, 2024

कार्तिक माहात्म्य - 06

 

अध्याय - 06

          

          नारद जी बोले – जब दो घड़ी रात बाकी रहे तब तुलसी की मृत्तिका, वस्त्र और कलश लेकर जलाशय पर जाये। कार्तिक में जहां कहीं भी प्रत्येक जलाशय के जल में स्नान करना चाहिए। गरम जल की अपेक्षा ठण्डे जल में स्नान करने से दस गुना पुण्य होता है। उससे सौ गुना पुण्य बाहरी कुएं के जल में स्नान करने से होता है। उससे अधिक पुण्य बावड़ी में और उससे भी अधिक पुण्य पोखर में स्नान करने से होता है। उससे दस गुना झरनों में और उससे भी अधिक पुण्य कार्तिक में नदी स्नान करने से होता है। उससे भी दस गुना पुण्य वहां होता हैं जहां दो नदियों का संगम हो और यदि कहीं तीन नदियों का संगम हो तब तो पुण्य की कोई सीमा ही नहीं।

          स्नान से पहले भगवान का ध्यान कर के स्नानार्थ संकल्प करना चाहिए फिर तीर्थ में उपस्थित देवताओं को क्रमश: अर्ध्य, आचमनीय आदि देना चाहिए। अर्ध्य मन्त्र इस प्रकार है :-

          “हे कमलनाथ्! आपको नमस्कार है, हे जलशायी भगवान! आपको प्रणाम है, हे ऋषिकेश! आपको नमस्कार है। मेरे दिए अर्ध्य को आप ग्रहण करें। वैकुण्ठ, प्रयाग तथा बद्रिकाश्रम में जहां कहीं भगवान विष्णु गये, वहां उन्होंने तीन प्रकार से अपना पांव रखा था। वहां पर ऋषि वेद यज्ञों सहित सभी देवता मेरी रक्षा करते रहें। हे जनार्दन, हे दामोदर, हे देवेश! आपको प्रसन्न करने हेतु मैं कार्तिक मास में विधि-विधान से ब्रह्ममुहूर्त में स्नान कर रहा हूँ। आपकी कृपा से मेरे सभी पापों का नाश हो। हे प्रभो! कार्तिक मास में व्रत तथा विधिपूर्वक स्नान करने वाला मैं अर्ध्य देता हूँ, आप राधिका सहित ग्रहण करें। हे कृष्ण! हे बलशाली राक्षसों का संहार करने वाले भगवन्! हे पापों का नाश करने वाले! कार्तिक मास में प्रतिदिन दिये हुए मेरे इस अर्ध्य द्वारा कार्तिक स्नान का व्रत करने वाला फल मुझे प्राप्त हो”।

          तत्पश्चात विष्णु, शिव तथा सूर्य का ध्यान कर के जल में प्रवेश कर नाभि के बराबर जल में खड़े होकर विधिपूर्वक स्नान करना चाहिए। गृहस्थी को तिल और आँवले का चूर्ण लगाकर तथा विधवा स्त्री व यती को तुलसी की जड़ की मिट्टी लगाकर स्नान करना चाहिए। सप्तमी, अमावस्या, नवमी, त्रयोदशी, द्वितीया, दशमी आदि तिथियों को आंवला तथा तिल से स्नान करना वर्जित है। स्नान करते हुए निम्न शब्दों का उच्चारण करना चाहिए –

          “जिस भक्तिभाव से भगवान ने देवताओं के कार्य के लिए तीन प्रकार का रूप धारण किया था, वही पापों का नाश करने वाले भगवान विष्णु अपनी कृपा से मुझे पवित्र बनाएं। जो अम्नुष्य भगवान विष्णु की आज्ञा से कार्तिक व्रत करता है, उसकी इन्द्रादि सभी देवता रक्षा करते हैं इसलिए वह मुझको पवित्र करें। बीजों, रहस्यों तथा यज्ञों सहित वेदों के मन्त्र कश्यप आदि ऋषि, इन्द्रादि देवता मुझे पवित्र करें। अदिति आदि सभी नारियां, यज्ञ, सिद्ध, सर्प और समस्त औषधियाँ व तीनो लोकों के पहाड़ मुझे पवित्र करें”।

          इस प्रकार कहकर स्नान करने के बाद मनुष्य को हाथ में पवित्री धारण कर के देवता, ऋषि, मनुष्यों तथा पितरों का विधिपूर्वक तर्पण करना चाहिए। तर्पण करते समय तर्पण में जितने तिल रहते हैं, उतने वर्ष पर्यन्त व्रती के पितृगण स्वर्ग में वास करते हैं। उसके बाद व्रती को जल से निकलकर शुद्ध वस्त्र धारण करने चाहिए। सभी तीर्थों के सारे कार्यों से निवृत्त होकर पुन: भगवान विष्णु का पूजन करना चाहिए। सभी तीर्थो के सारे देवताओं का स्मरण करके भक्तिपूर्वक सावधान होकर चन्दन, फूल और फलों के साथ भगवान विष्णु को फिर से अर्ध्य देना चाहिए। अर्ध्य के मंत्र का अर्थ इस प्रकार है :-

          ‘मैंने पवित्र कार्तिक मास में स्नान किया है। हे विष्णु! राधा के साथ आप मेरे दिये अर्ध्य को ग्रहण करें’

          तत्पश्चात चन्दन, फूल और ताम्बूल आदि से वेदपाठी ब्राह्मणों का श्रद्धापूर्वक पूजन करें और बारम्बार नमस्कार करें। ब्राह्मणों के दाएं पांव में तीर्थों का वास होता है, मुँह में वेद और समस्त अंगों में देवताओं का वास होता है। अपने कल्याण की इच्छा रखने वाले मनुष्य को इनका न तो अपमान करना चाहिए और न ही इनका विरोध करना चाहिए। फिर एकाग्रचित्त होकर भगवान विष्णु की प्रिय तुलसी जी की पूजा करनी चाहिए, उनकी परिक्रमा कर के उनको प्रणाम करना चाहिए –

          “हे देवि! हे तुलसी! देवताओं ने ही प्राचीनकाल से तुम्हारा निर्माण किया है और ऋषियों ने तुम्हारी पूजा की है। हे विष्णुप्रिया तुलसी! आपको नमस्कार है। आप मेरे समस्त पापों को नष्ट करो।”

          इस प्रकार जो मनुष्य भक्तिपूर्वक कार्तिक व्रत का अनुष्ठान करते हैं, वे संसार के सुखों का भोग करते हुए अन्त में मोक्ष को प्राप्त करते हैं।


🚩जय श्रीराधे कृष्णा🚩