Showing posts with label adhyay 17. Show all posts
Showing posts with label adhyay 17. Show all posts

Wednesday, February 7, 2024

कार्तिक माहात्म्य--17


अध्याय - 17

          

          उस समय शिवजी के गण प्रबल थे और उन्होंने जलन्धर के शुम्भ-निशुम्भ और महासुर कालनेमि आदि को पराजित कर दिया। यह देख कर सागर पुत्र जलंधर एक विशाल रथ पर चढ़कर – जिस पर लम्बी पताका लगी हुई थी – युद्धभूमि में आया। इधर जय और शील नामक शंकर जी के गण भी युद्ध में तत्पर होकर गर्जने लगे। इस प्रकार दोनो सेनाओं के हाथी, घोड़े, शंख, भेरी और दोनों ओर के सिंहनाद से धरती त्रस्त हो गयी।

          जलंधर ने कुहरे के समान असंख्य बाणों को फेंक कर पृथ्वी से आकाश तक व्याप्त कर दिया और नंदी को पांच, गणेश को पांच, वीरभद्र को एक साथ ही बीस बाण मारकर उनके शरीर को छेद दिया और मेघ के समान गर्जना करने लगा। यह देख कार्तिकेय ने भी दैत्य जलन्धर को अपनी शक्ति उठाकर मारी और घोर गर्जन किया, जिसके आघात से वह मूर्छित हो पृथ्वी पर गिर पड़ा। परन्तु वह शीघ्र ही उठा पडा़ और क्रोधा विष्ट हो कार्तिकेय पर अपनी गदा से प्रहार करने लगा।

          ब्रह्मा जी के वरदान की सफलता के लिए शंकर पुत्र कार्तिकेय पृथ्वी पर सो गये। गणेश जी भी गदा के प्रहार से व्याकुल होकर धरती पर गिर पड़े। नंदी व्याकुल हो गदा प्रहार से पृथ्वी पर गिर गये। फिर दैत्य ने हाथ में परिध ले शीघ्र ही वीरभद्र को पृथ्वी पर गिरा देख शंकर जी गण चिल्लाते हुए संग्राम भूमि छोड़ बड़े वेग से भाग चले। वे भागे हुए गण शीघ्र ही शिवजी के पास आ गये और व्याकुलता से युद्ध का सब समाचार कह सुनाया। लीलाधारी भगवान ने उन्हें अभय दे सबका सन्तोषवर्द्धन किया।


🚩जय श्रीराधे कृष्णा🚩