Tuesday, July 20, 2021

Sawan Krishan Ganesh Chathurthi varat katha (श्रावण कृष्ण-गणेश चतुर्थी व्रत कथा)


ॐ गण गणपते नमः 




                            गणेश भक्तों के लिए सन्तानादि प्रदायक कथा

ऋषिगण पूछते हैं कि हे स्कन्द कुमार! दरिद्बता, शोक, कुष्ठ आदि से विकलांग,शत्रुओं से संतप्त , राज्य से निष्कासित राजा, सदैव दुःखी  रहने वाले, धनहीन, समस्त उपद्रवों से पीड़ित, विद्याहीन, संतानहीन , घर से उपरोक्त कष्टों का निवारण हो । यदि आप कोई उपाय जानते हों. तो उसे बतलाइए स्वामी कीर्तिकिय जी ने कहा-हे ऋषियों! आपने जो प्रश्न किया है,उसके निवारार्थ मैं एक व्रत बतलाता हूँ , सुनिए। इस व्रत के करने से पृथ्वी के समस्त प्राणी सभी संकटों से मुक्त हो जाते हैं। यह व्रत राज  महापुण्यकारी एवं मानवों को सभी कार्यों में सफलता प्रदान करने वाला है। विशेषतया यदि इस व्रत को महिलायें करें तो उन्हें सन्तान एवं सौभाग्य की वृद्धि होती है। इस व्रत को धर्मराज युथिष्ठिर ने किया था। पूर्वकाल में राज्यच्युत होकर अपने भाइयों के साथ जब धर्मराज वन में चले गये थे, तो उस वनवास काल में भगवान श्रीकृष्ण ने उनसे कहा था। युथिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से अपने कष्टों के शमनार्थ जो प्रश्न किया था, उस कथा को आप श्रवण कीजिए ।

             युधिष्ठिर पूछते हैं कि, हे पुरुषोत्तम! ऐसा कौन सा उपाय है जिससे हम वर्तमान संकटों से मुक्त हो सकें। हे गदाधर! आप सर्वज्ञ हैं। हम लोगोंको आगे अब किसी प्रकार का कष्ट न भुगनता पड़े, ऐसा उपाय बतलाइये ।स्कन्दकुमार जी कहते हैं कि जब धैर्यवान युधिष्ठिर विनम्र भाव से हाथ जोड़कर, बारम्बार अपने कष्टों के निवारण का उपाय पूछने लगे तो भगवान ह्रषिकेश ने कहा |

              श्रीकृष्ण जी ने कहा कि हे राजन! सम्पूर्ण कामनाओं को पूर्ण करन वाला एक बहुत बड़ा गुप्त व्रत है। हे पुरुषोत्तम! इस व्रत के सम्बन्ध में मैंने आज तक किसी को नहीं बतलाया है। हे राजन! प्राचीनकाल में सत्ययुग की बात है कि पर्वतराज हिमाचल की सुन्दर कन्या पार्वती ने शंकर जी को पति रूप में प्राप्त करने के लिए गहन वन में जाकर कठोर तपस्या कौ। परन्तु भगवान शिव प्रसन्न होकर प्रकट नहीं हुए तब शेलतनया पार्वतीजी ने अनादि काल से विद्यमान गणेश जी का स्मरण किया। गणेश जी को उसी क्षण प्रकट देखकर पार्वती जी ने पूछा कि मैंने कुठीर, दुर्लभ एवं लोमहर्षक तपस्या की, किन्तु अपने प्रिय भगवान शिव को प्राप्त न कर सकी। वह कष्टविनाशक दिव्य व्रत जिसे नारद जी ने कहा है और जो आपका ही व्रत है, उस प्राचीन व्रत के तत्व को आप मुझसे कहिये। पार्वती जी की बात सुनकर तत्कालीन सिद्धि दाता गणेश जी उस कष्टनाशक, शुभदायक व्रत का प्रेम से वर्णन करने लगे ।

           हे देवाधिदेवेश्वरी! श्रावण के कृष्ण चतुर्थी की रात्रि में चन्द्रोदय होने पर पूजन करना चाहिए। उस दिन प्रातःकृत्य से निबटकर मन में संकल्प करें कि “जब तक चन्द्रोदय नहीं होगा, मैं निराहार रहूँगी। पहले गणेश पूजन करके तभी भोजन ग्रहण करूंगी। मन में ऐसा निश्चय करना चाहिए।इसके बाद सफेद तिल के जल से स्नान करें । अपना नित्य कर्म करने के बाद हे सूंदर व्रत वाली मेरा पूजन करें (अभाव  में चांदी ,अष्ट धातु अथवा मिट्टी की मूर्ति की ही पूजा करें ) अपनी शक्ति क अनुसार सोने, चांदी , तांबे अथवा मिट्टी के कलश में जल भर कर उस पर गणेश जी की प्रतिमा स्थापित करें | मूर्ति कलश पर वस्त्राच्छादन करके अष्टदल कमल की आकृति बनावें और उसी मूर्ति की स्थापना करें | तत्पश्चात षोडशोपचार विधि से भक्ति पूर्वक पूजन करें | मूर्ति का ध्यान निमन प्रकार से करें - हे लम्बोदर ! चार भुज वाले !तीन नेत्र वाले ! लाल रंग वाले!हे नील वर्ण वाले ! शोभा क भण्डार ! प्रसन्न मुख वाले गणेश जी !में आपक ध्यान करता हूँ। हे गजानन! मैं आपका आवाहन करता हूँ। हे विघ्नराज! आपको प्रणाम करता हूँ, यह आसन है। हे लम्बोदर! यह आपके लिए पाद्य है, हे शंकरसुतन! यह आपके लिए अर्घ्य है। हे उमापुत्र! यह आपके स्नानार्थ जल है | हे वक्रतुण्ड ! ये आपके लिए आचमनीय जल है | हे शूर्पकर्ण ! यह आपके लिए वस्त्र है | हे कुब्ज ! यह आपके लिए यज्ञोपवीत है | हे गणेश्वर ! यह आपक लिए रोली , चन्दन है | हे विघ्नविनाशन !यह आपके लिए फूल हैं | हे विकट !यह आपके लिए धूपबत्ती है | हे वामन ! यह आपके लिए दीपक है | हे सर्वदेव ! यह आपके लिए नैवेद्य है | हे सर्वार्तिनाशन देव ! यह आपके निमिरत फल है | हे विघ्नहर्ता !यह आपके निमिरत मेरा प्रणाम है | प्रणाम करने के बाद क्षमा प्रार्थना करें | इस प्रकार  षोडशोपचार रीति से पूजन करके नाना प्रकार क भक्ष्य पदार्थों को बना कर भगवन को भोग लगावें | हे देवी शुद्ध देसी घी में पंद्रह लड्डू बनावें | सर्व प्रथम भगवन को लड्डू अर्पित करके उस में से पांच ब्राह्मण को दे दें | अपनी सामर्थ्ये के अनुसार दक्षिणा दे कर चन्द्रोदय होने पर भक्ति भाव से अर्घ्य दें |  तदनन्तर पांच लड्डू का स्वयं भोजन करें | 

            फिर हे देवी! तुम सब तिथियों में सर्वोत्तम हो, गणेश जी की परम प्रियतमा हो। हे चतुर्थी हमारे द्वारा प्रदत्त अर्घ्य को ग्रहण करो, तुम्हें प्रणाम है।निम्न प्रकार से चन्द्रमा को अर्घ्य प्रदान करें--क्षीरसागर से उत्पन्न हे लक्ष्मी के भाई) हे निशाकर! रोहिणी सहित हे शशि! मेरे दिये हुये अर्घ्य को ग्रहण कीजिये । गणेश जी को इस प्रकार प्रणाम करें--हे लम्बोदर! आप सम्पूर्ण इच्छाओं को पूर्ण करने वाले हैं आपको प्रणाम है। हे समस्त विघ्नों  के नाशक! आप मेरी अभिलाषाओं को पूर्ण करें। तत्पश्चात ब्राह्मण की अआर्थना करें--हे ट्विजराज ! आपको नमस्कार है, आप साक्षात देवस्वरूप  हैं । गणेश जी की प्रसन्नता के लिए हम आपको लड्डू समर्पित कर रहे हैं। आप हम दोनों का उद्धार करने के लिए दक्षिणा सहित इन पाँच लड्डुओं को स्वीकार करें। हम आपको नमस्कार करते हैं। इसके बाद ब्राह्मण भोजन कराकर गणेश जी से प्रार्थना करें। यदि इन सब कार्यों के करने की शक्ति न हो तो अपने भाई-बन्धुओं के साथ दही एवं पूजन में निवेदित पदार्थ का भोजन करें। प्रार्थना करके प्रतिमा का विसर्जन करें और अपने गुरु को अन्न-वस्त्रादि एवं दक्षिणा के साथ मूर्ति दे देवें। इस प्रकार से विसर्जन करें--हे देवों में श्रेष्ठ! गणेश जी! आप अपने स्थानको प्रस्थान कीजिए एवं इस व्रत पूजा के फल को दीजिए।

            हे सुमुखि ! इस प्रकार जीवन भर गणेश चतुर्थी का व्रत करना चाहिए। यदि जन्म भर न कर सकें तो इक्कीस वर्ष तक करें। यदि इतना करना भी सम्भव न हो तो एक वर्ष तक बारहों महीने के व्रत को करें। यदि |! इतना भी न कर सकें तो वर्ष के एक मास को अवश्य ही व्रत करें और श्रावण चतुर्थी को व्रत का उद्यापन करें।


                                                        || जय गणपति गणेश जी महाराज || 

Sunday, July 18, 2021

Sawan Ke Somvaar ki Varat Katha (सावन के सोमवार की व्रत कथा )


ॐ गण गणपते नमः 

 Sawan Ke Somvaar ki Varat Katha (सावन के सोमवार की व्रत कथा )


        प्राचीन समय में एक नगर में एक बुढ़िया परिवार सहित रहती थी | उसके परिवार में एक लड़की और दो लड़के थे | लड़के बड़े थे परन्तु उनकी शादी नहीं हुई थी | लड़की भी शादी  के योग्य हो गयी थी | बुढ़िया धार्मिक विचारों वाली महिला थी | उसके घर के पास भगवान् शिव का मंदिर था जिस में एक साधु रहता था | वह बड़ी श्रद्धा से भगवान् शिव की सेवा करता था | बुढ़िया भी प्रतिदिन सुबह नहा धोकर मंदिर जाया करती थी | शिवरात्रि के दिन सुबह बुढ़िया अपने बच्चों को साथ लेकर मन्दिर पहुँची। सभी ने बड़ी श्रद्धा से भगवान्‌
शिव की पूजा अर्चना की। घर को वापिस आते समय बुढ़िया ने साधु को बच्चों को आशीर्वाद देने को कहा। साधु ने लड़कों को बहुत से आशीर्वाद दिए परन्तु लड़की को कोई आशीर्वाद न दिया। बुढ़िया ने साधु से हैरान होकर नम्रता  सहित प्रश्न किया, “'हे महात्मा! आपने लड़कों को तो आशीर्वाद दिया परन्तु मेरी इस प्यारी बच्ची को आशीर्वाद क्‍यों नहीं दिया? कृपा मेरी शंका का समाधान करो।''

        साधु ने सब की ओर स्नेह की दृष्टि  डाली और कहा कि मैं इस लड़की को आशीर्वाद नहीं दे सकता क्योंकि इसके भाग्य में सुहाग का सुख नहीं है। साधु केवचन को सुनकर सभी हैरान हो गए। सभी के चेहरों पर परेशानी की लकीरें  प्रकट हो आईं। बुढ़िया ने साधु से प्रार्थना की कि इसका कोई उपाय हो तो कृपा कहें।जिससे हमारी प्यारी बेटी को सुहाग की प्राप्ति हो। हम अपनी बेटी के इस कष्ट को दूर करने के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं। अगर हमारे प्राणों की आहुति से ही हमारी बेटी का भला हो सकता है तो हम उसके लिए भी तैयार हैं। उन सब की इस प्रकार की बातें सुनकर साधु कुछ देर मौन हो गया।

        साधु ने कहा कि एक उपाय है परन्तु उपाय बहुत कठिन है इसमें प्राण जाने का भी भय है। सभी ने साधु से प्रार्थना की, “कृपा उस उपाय को हम पर प्रकट करें,हम उसे अवश्य करेंगे।'' इन वचनों को सुन कर साधु ने कहा कि यहां से सात समुद्र पार एक रंमणीक नगर में सोमपत्ति नाम की एक स्त्री रहती है, जिसके सौ बेटे हैं, यह वहां जाकर अपनी सेवा से उस स्त्री को प्रसन्‍न करे। अगर वह स्त्री प्रसन्‍न हो गई तो इसको अवश्य सुहाग सुख की प्राप्ति हो सकती है। आप लोग यहां से छः समुद्र तो आसानी से पार कर सकते हो क्योंकि इनको पार करने के लिए आपको किश्ती मिल सकती है परन्तु सातवें समुद्र को पार करने के लिए
 कुछ भी न मिलेगा। क्योंकि वहाँ पर मानव का जा पाना सम्भव नहीं है। अगर यह लड़की उस सातवें समुद्र को पार कर लेगी तो अवश्य ही इसको सौभाग्य प्राप्त होगा| साधु के कथनानुसार वे सभी भगवान्‌ शिव के सहारे घर से निकल पड़े। छः समुद्र तो उन्होंने भगवान्‌ की कृपा से आसानी से किश्ती में बैठ कर पार कर लिए | 

        सातवें समुद्र के तट पर पहुँच कर वे उसे पार करने के उपाय को सोचते हुए भगवान्‌ शिव की अराधना करने लगे। भगवान्‌ शंकर की कृपा से उन्हें वहां एक पेड़ दिखाई दिया। पेड़ के ऊपर एक हंस बैठा हुआ था। हंस ने उनसे कहा कि मैं इस पेड़ के पत्तों से आप लोगों को एक बेड़ी बना कर दे सकता हूँ। सभी ने सोचा कि अगर भगवान्‌ की कृपा होगी तो यह बेड़ी हमें हमारी मंजिल पर पहुँचा देगी, नहीं तो मौत निश्चित ही है। उन्होंने हंस से बेड़ी बनाकर देने की प्रार्थना की। हंस ने कुछ ही समय में उनको बेड़ी बनाकर दे दी। सभी ने हंस का धन्यवाद किया और भगवान्‌ शिव के नाम का सहारा लेकर बेड़ी में सवार हो गए।  ॐ नमो शिवाय: का जाप करते-करते वे लोग सातवां समुद्र भी पार कर गए। थोड़ी दूर चलने पर वे रमणीक नगर में पहुँचे। वहाँ पर उन्होंने सोमपत्ति को देखा और उसके सौ पुत्रों व बहुओं को देखा। उसके बहु-बेटे सभी अलग-अलग रहते थे। वे सभी सोमपत्ति के घर के पास छुप कर रहने लगे | 

        सोमपत्ति रोज़ सुबह स्नान करने के लिए नदी पर जाया करती थी। जैसे ही सोमपत्ति स्नान के लिए घर से निकलती थी तो वह लड़की हर रोज़ चुप चाप  उसके पीछे से घर में आती । घर का झाड़, चौंका, बर्तन आदि साफ़ करके उसकेघर आने से पहले वापिस अपने परिवार में पहुँच जाती थी। हर रोज़ जैसे ही सोमयत्ति स्नान आदि से निवृत होकर घर को वापिस आती तो घर की साफ़ सफाई देखकर हैरान होकर सोचती कि कौन मेरे पीछे से आता है ,जो मेरे घर की सफाई, बर्तन आदि साफ कर जाता है। मैं उसको कैसे देखूं। ऐसे ही महिनों बीत गए। एक दिन किसी कारणवश सोमपत्ति की नींद कुछ देर से खुली परन्तु वह लड़की अपने नियमानुसार उसके घर साफ़-सफाई के लिए आ पहुँची और अपना नित्य का कार्य करने लगी। सोमपत्ति ने उस लड़की को देखकर पूछा, “बेटी, तुम कौन हो? यहाँ पर किस लिए आई हो? तुम्हें क्या चाहिए? '' सोमपत्ति के वचनों को सुनकर लड़की उसी समय उसके चरणों में गिर पड़ी। सोमपत्ति ने नींद में ही उसको आशीर्वाद दिया, बेटी, दूधवती, पुत्रवर्ती, सौभाग्यवती हो।'' परन्तु लड़की ने फिर भी उसके पांवों से सिर न उठाया तीन बार वही आशीर्वाद देने के पश्चात्‌ उठकर जब उस लड़की के सिर को उठाया तो देखा कि इसके भाग्य में तो सुहाग सुख नहीं है परन्तु मैंने इसे पुत्रवती होने का आशीर्वाद दे दिया है। यह कैसे होगा? सोमपत्ति अभी सोच ही रही थी कि लड़की की माँ व भाईं सभी वहां पर आ गए। सभी सोमपत्ति से प्रार्थना करने लगे। हे माँ, अब आप ही इसकी माँ हैं और आप ही इसको इसकी खुशियाँ दे सकती हैं। माँ सोमपत्ति ने कहा, “ठीक है। मगर यह सावन मास में आने वाले सभी सोमवार को भगवान्‌ शिव का व्रत करे। यह व्रत सभी को मनवांछित फल प्रदान
करने वाले हैं। मां पार्वती और भगवान्‌ शिव के आशीर्वाद से इसको भी मनवांछित फल अवश्य प्राप्त होगा। आप लोग भी इसके लिए सावन के प्रथम सोमवार को  लड़का ढूंढना । दूसरे सोमवार को सगाई करना। तीसरे सोमवार को साहे चिट्ठी भेजना  तथा चौथे सोमवार को बारात मंगवाना। जैसे ही लड़का लगन मण्डप में बैठेगा उसी समय ही वह समा जाएगा। सभी रिश्तेदार, भाई-बन्धु विलाप करेंगे।  दुनिया तरह तरह की बातें करेगी। मगर आप मत रोना। सभी को चुप करवानाऔर मुझे याद करना। सब ठीक हो जाएगा। उन्होंने कहा, “ठीक है माँ! हम ऐसा ही करेंगे। सभी सोमपत्ति माँ से आशीर्वाद लेकर अपने घर को चल पड़े।
            घर वापिस आकर सभी बड़ी श्रद्धा से भगवान्‌ की पूजा करते हुए समय व्यतीत करने लगे। लड़की पूरी श्रद्धा, भक्ति भाव से सोमवार का व्रत करने लगी। सावन के पहले सोमवार को उसकी माँ व भाईयों ने सोमपत्ति के कथनानुसार लड़का देखा। लड़का बहुत सुन्दर व गुणवान था। दूसरे सोमवार को उन्होंने बड़ी धूमधाम से सगाई की रसमें पूरी कीं। तीसरे सोमवार को साहे चिट्ठी भेजी तथा सावन के चौथे सोमवार को बारात लाने को कहा।

        उन्होंने शादी के दिन घर को खूब अच्छी तरह सजाया। बारात के स्वागत के लिए सजावटी द्वार लगाए, गाजे बाजे का भी खूब प्रबन्ध किया। निश्चित दिन यानि चौथे सोमवार को निश्चित समय पर बहुत धूमधाम से खुशी में नाचती- घूमती बारात उनके द्वार पहुंची । सभी ने मिलकर बारात का स्वागत किया। बारात को भोजन वगैरा आदि करवाया। बारात के विश्राम का प्रबन्ध किया।  जब लगन  का समय आया तो लड़के को लगन मण्डप में बुलाया गया। जैसे ही लड़का लगन मण्डप में आसन पर बैठा उसी समय समा गया। लड़के के परिवार के सदस्य व बारात में शामिल सभी बाराती रोने लगे। लोग तरह-तरह की बातें बनाने लगे। कोई कहता कि यह डायन है पहले ही दिन पति को खा गई। कोई कहता लड़की कुल्टा है। कोई कहता कुल्छनी है। जितने मुँह उतनी बातें । लड़की मन ही मन में भगवान्‌ शंकर व पार्वती को याद करने लगी। हे भोले नाथ, मेरी इज्जत रखो। मेरे परिवार की इज़्ज़त को बनाए रखो। हे माँ पार्वती! तुम सुहाग को देने वाली हो, मेरे सुहाग को जिन्दा कर दो।

        लड़की की माँ व भाई परिवार सहित माँ सोमपत्ति को याद करने लगे। वे सभी बारातियों को ढांढस बंधवा रहे थे कि.सब कुछ ठीक हो जाएगा, भगवान्‌ शंकर की महिमा अपरम्पार है। उनकी पुकार माँ सोमपत्ति के कानों तक जा पहुँची । उसी समय माँ सोमपत्ति ने अपने सभी बहु-पुत्रों पर जल छिड़क कर उन सभी को सुला दिया। उनको सुलाने के पश्चात्‌ वह अपनी पड़ोसन के पास गई और उसको कहने लगी कि कोई भी इनमें से जागे न, और न ही कोई इनको जगाए। अगर कोई जगाएगा या कोई जाग गया तो वह मर जाएगा। इतना कह कर सोमपत्ति वहाँ से चलपड़ी।सोमपत्ति  ने अपने १00 पुत्रों व बहुओं की आयु में से थोड़ी-थोड़ी आयु जल के रूप में उस लड़की के सुहाग पर छिड़क कर उसको जीवित कर दिया। लड़के के जीवित होते ही शादी की सभी रस्में पूरी की गई। सभी बहुत प्रसन्‍न थे। शादी सम्पन्न होने के पश्चात्‌ माँ  सोमपत्ति से आशीर्वाद लेकर डोली विदा की गई।
उसके बाद माँ सोमपत्ति अपने नगर को चली गई। वह लड़की प्रति वर्ष सावन मास के सोमवार का व्रत करने लगी। व्रत के प्रभाव से उसके परिवार में किसी चीज़ की कमी न रही और वह खुशी-खुशी अपने घर में सुख से जीवन व्यतीत करने लगी॥

जिस तरह भगवान्‌ शिव ने उस लड़की के सुहाग को जिन्दा किया। उसी प्रकार
भगवान्‌ शिव सब का भला करें और सब को मन वांछित फल प्रदान करें।

ॐ नमः शिवाय: ||