Sunday, January 28, 2024

कार्तिक माहात्म्य --08


अध्याय - 08

          

          नारदजी बोले – अब मैं कार्तिक व्रत के उद्यापन का वर्णन करता हूँ जो सब पापों का नाश करने वाला है। व्रत का पालन करने वाला मनुष्य कार्तिक शुक्ला चतुर्दशी को व्रतव की पूर्ति और भगवान विष्णु की प्रीति के लिए उद्यापन करे। तुलसी के ऊपर एक सुन्दर मण्डप बनवावे, उसे केले के खम्भों से संयुक्त कर के नाना प्रकार की धातुओं से उसकी विचित्र शोभा बढ़ावे। मण्डप के चारों ओर दीपकों की श्रेणी सुन्दर ढंग से सजाकर रखे। उस मण्डप में सुन्दर बन्दनवारों से सुशोभित चार दरवाजे बनावे और उन्हें फूलों से तथा चंवर से सुसज्जित करे। द्वारो पर पृथक-पृथक मिट्टी के द्वारपाल बनाकर उनकी पूजा करे। उनके नाम इस प्रकार हैं – जय, विजय, चण्ड, प्रचण्ड, नन्द, सुनन्द, कुमुद और कुमुदाक्ष। उन्हें चारों दरवाजों पर दो-दो के क्रम से स्थापित कर भक्तिपूर्वक पूजन करे।

          तुलसी की जड़ के समीप चार रंगों से सुशोभित सर्वतोभद्रमण्डल बनावे और उसके ऊपर पूर्णपत्र तथा पंचरत्न से संयुक्त कलश की स्थापना करें। कलश के ऊपर शंख, चक्र, गदाधारी भगवान विष्णु का पूजन करें। भक्तिपूर्वक उस तिथि में उपवास करें तथा रात्रि में गीत, वाद्य, कीर्तन आदि मंगलमय आयोजनों के साथ जागरण करें। जो भगवान विष्णु के लिए जागरण करते समय भक्तिपूर्वक भगवत्सम्बन्धी पदों का गान करते हैं वे सैकड़ो जन्मों की पापराशि से मुक्त हो जाते हैं।

          जो मनुष्य भगवान के निमित्त जागरण कर के रात्रि भर भगवान का कीर्तन करते हैं, उनको असंख्य गोदान का फल मिलता है। जो मनुष्य भगवान की मूर्ति के सामने नृत्य-गान करते हैं उनके अनेक जन्मों के एकत्रित पाप नष्ट हो जाते हैं। जो भगवान के सम्मुख बैठकर कीर्तन करते हैं और बंसी आदि बजाकर भगवद भक्तों को प्रसन्न करते हैं तथा भक्ति से रात्रि भर जागरण करते हैं, उन्हें करोड़ो तीर्थ करने का फल मिलता है।

          उसके बाद पूर्णमासी में एक सपत्नीक ब्राह्मण को निमंत्रित करें। प्रात:काल स्नान और देव पूजन कर के वेदी पर अग्नि की स्थापना करे और भगवान की प्रीति के लिए तिल और खीर की आहुति दे। होम की शेष विधि पूरी कर के भक्ति पूर्वक ब्राह्मणों का पूजन करें और उन्हें यथाशक्ति दक्षिणा दें फिर उनसे इस प्रकार क्षमा प्रार्थना करें – ‘आप सब लोगों की अनुकम्पा से मुझ पर भगवान सदैव प्रसन्न रहें। इस व्रत को करने से मेरे सात जन्मों के किये हुए पाप नष्ट हो जायें और मेरी सन्तान चिरंजीवी हो। इस पूजा के द्वारा मेरी सभी मनोकामनाएँ पूर्ण हों, मेरी मृत्यु के पश्चात मुझे अतिशय दुर्लभ विष्णुलोक की प्राप्ति हो।’

          पूजा की समस्त वस्तुओं के साथ गाय भी गुरु को दान में दे, उसके पश्चात घरवालों और मित्रों के साथ स्वयं भोजन करें।

          भगवान द्वाद्शी तिथि को शयन से उठे, त्रयोदशी को देवताओं से मिले और चतुर्दशी को सबने उनका दर्शन एवं पूजन किया इसलिए उस तिथि में भगवान की पूजा करनी चाहिए। गुरु की आज्ञा से भगवान विष्णु की सुवर्णमयी प्रतिमा का पूजन करें। इस पूर्णिमा को पुष्कर तीर्थ की यात्रा श्रेष्ठ मानी गयी है। कार्तिक माह में इस विधि का पालन करना चाहिए। जो इस प्रकार कार्तिक के व्रत का पालन करते हैं वे धन्य और पूजनीय हैं उन्हें उत्तम फल की प्राप्ति होती है। जो भगवान विष्णु की भक्ति में तत्पर हो कार्तिक में व्रत का पालन करते हैं उनके शरीर में स्थित सभी पाप तत्काल नष्ट हो जाते हैं। जो श्रद्धापूर्वक कार्तिक के उद्यापन का माहात्म्य सुनता या सुनाता है वह भगवान विष्णु का सायुज्य प्राप्त करता है।

क्रमशः

  

🚩जय श्रीराधे कृष्णा🚩


Saturday, January 27, 2024

कार्तिक माहात्म्य -- 07


अध्याय - 07

          

          नारद जी ने कहा – हे राजन! कार्तिक मास में व्रत करने वालों के नियमों को मैं संक्षेप में बतलाता हूँ, उसे आप सुनिए। व्रती को सब प्रकार के आमिष मांस, उरद, राई, खटाई तथा नशीली वस्तुओं का त्याग कर देना चाहिए। व्रती को दूसरे का अन्न ग्रहण नहीं करना चाहिए, किसी से द्वेष नहीं करना चाहिए और तीर्थ के अतिरिक्त अन्य कोई यात्रा नहीं करनी चाहिए। देवता, वेद, ब्राह्मण, गाय, व्रती, नारी, राजा तथा गुरुजनों की निन्दा भी नहीं करनी चाहिए।

          व्रती को दाल, तिल, पकवान व दान किया हुआ भोजन ग्रहण नहीं करना चाहिए। किसी की चुगली या निन्दा भी नहीं करनी चाहिए। किसी भी जीव का मांस नहीं छूना चाहिए। पान, कत्था, चूना, नींबू, मसूर, बासी तथा झूठे अन्न का भी प्रयोग नहीं करना चाहिए। गाय, बकरी तथा भैंस के अतिरिक्त अन्य किसी पशु का दूध नहीं पीना चाहिए। कांस्य के पात्र में रखा हुआ पंचगव्य, बहुत छोटे घड़े का पानी तथा केवल अपने लिए ही पका हुआ अन्न प्रयोग करना चाहिए।

          कार्तिक माह का व्रत करने वाले मनुष्य को सदैव ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। उसे धरती पर सोना चाहिए और दिन के चौथे पहर में केवल एक बार पत्तल में भोजन करना चाहिए। व्रती कार्तिक माह में केवल नरक चतुर्दशी जिसे छोटी दीवाली भी कहा जाता है के दिन ही शरीर में तेल लगा सकता है। कार्तिक माह में व्रत करने वाले मनुष्य को सिंघाड़ा, प्याज, मठ्ठा, गाजर, मूली, काशीफल, लौकी, तरबूज इन वस्तुओं का प्रयोग बिलकुल नहीं करना चाहिए। रजस्वला, चाण्डाल, पापी, म्लेच्छ, पतित, व्रतहीन, ब्राह्मणद्रोही और नास्तिकों से बातचीत नहीं करनी चाहिए। भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए अपनी शक्ति के अनुसार चान्द्रायण आदि का व्रत करना चाहिए और उपर्युक्त नियमों का पालन करना चाहिए।

          व्रती को प्रतिपदा को कुम्हड़ा, द्वितीया को कटहल, तृतीया को तरूणी स्त्री, चतुर्थी को मूली, पंचमी को बेल, षष्ठी को तरबूज, सप्तमी को आंवला, अष्टमी को नारियल, नवमी को मूली, दशमी को लौकी, एकादशी को परवल, द्वादशी को बेर, त्रयोदशी को मठ्ठा, चतुर्दशी को गाजर तथा पूर्णिमा को शाक का प्रयोग नहीं करना चाहिए। रविवार को आंवला का प्रयोग नहीं करना चाहिए। कार्तिक माह में व्रत करने वाला मनुष्य यदि इन शाकों में से किसी शाक का सेवन करना चाहे तो पहले ब्राह्मण को देखकर ग्रहण करे।

          यही विधान माघ माह के व्रत के लिए भी है। देवोत्थानी एकादशी में पहले कही गयी विधि के अनुसार नृत्य, जागरण, गायन-वादन आदि करना चाहिए। इसको विधिपूर्वक करने वाले मनुष्य को देखकर यमदूत ऎसे भाग जाते हैं जैसे सिंह की गर्जना से हाथी भाग जाते हैं। कार्तिक माह का व्रत सभी व्रतों में श्रेष्ठ है। इसके अतिरिक्त जितने भी व्रत-यज्ञ हैं वह हजार की संख्या में किये जाने पर भी इसकी तुलना नहीं कर सकते क्योंकि यज्ञ करने वाले मनुष्य को सीधा वैकुण्ठ की प्राप्ति होती है। जिस प्रकार राजा की रक्षा उसके अंगरक्षक करते हैं उसी प्रकार कार्तिक माह का व्रत करने वाले की रक्षा भगवान विष्णु की आज्ञा से इन्द्रादि देवता करते हैं।

          व्रती मनुष्य जहाँ कहीं भी रहता है वहीं पर उसकी पूजा होती है, उसका यश फैलता है। उसके निवास स्थान पर भूत, पिशाच आदि कोई भी नहीं रह पाते। विधि पूर्वक कार्तिक माह का व्रत करने वाले मनुष्यों के पुण्यों का वर्णन करने में ब्रह्माजी भी असमर्थ हैं। यह व्रत सभी पापों को नष्ट करने वाला, पुत्र-पौत्र प्रदान करने वाला और धन-धान्य की वृद्धि करने वाला है।

क्रमश


🚩जय श्रीराधे कृष्णा🚩