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Monday, August 15, 2022

Shri Krishanashtkum (श्री कृष्णाष्टकम)

 



भजे व्रजैकमण्डनं समस्तपापखण्डनं, स्वभक्तचित्तरंजनं सदैव नन्दनन्दनम्। 

सुपिच्छगुच्छमस्तकं सुनादवेणुहस्तकं, अनंगरंगसागरं नमामि कृष्णनागरम्॥१॥


मनोजगर्वमोचनं विशाललोललोचनं, विधूतगोपशोचनं नमामि पद्मलोचनम्।

 करारविन्दभूधरं स्मितावलोकसुन्दरं, महेन्द्रमानदारणं नमामि कृष्ण वारणम्॥२॥


कदम्बसूनकुण्डलं सुचारुगण्डमण्डलं, व्रजांगनैकवल्लभं नमामि कृष्णदुर्लभम्।

 यशोदया समोदया सगोपया सनन्दया, युतं सुखैकदायकं नमामि गोपनायकम्॥३॥


सदैव पादपंकजं मदीय मानसे निजं, दधानमुक्तमालकं नमामि नन्दबालकम्। 

समस्तदोषशोषणं समस्तलोकपोषणं, समस्तगोपमानसं नमामि नन्दलालसम्॥४॥


भुवो भरावतारकं भवाब्धिकर्णधारकं, यशोमतीकिशोरकं नमामि चित्तचोरकम्।

 दृगन्तकान्तभंगिनं सदा सदालिसंगिनं, दिने-दिने नवं-नवं नमामि नन्दसम्भवम्॥५॥


गुणाकरं सुखाकरं कृपाकरं कृपापरं, सुरद्विषन्निकन्दनं नमामि गोपनन्दनं। 

नवीन गोपनागरं नवीनकेलि-लम्पटं, नमामि मेघसुन्दरं तडित्प्रभालसत्पटम्।।६।।


समस्त गोप मोहनं, हृदम्बुजैक मोदनं, नमामिकुंजमध्यगं प्रसन्न भानुशोभनम्। 

निकामकामदायकं दृगन्तचारुसायकं, रसालवेणुगायकं नमामिकुंजनायकम्।।७।।


विदग्ध गोपिकामनो मनोज्ञतल्पशायिनं, नमामि कुंजकानने प्रवृद्धवह्निपायिनम्। 

किशोरकान्ति रंजितं दृगंजनं सुशोभितं, गजेन्द्रमोक्षकारिणं नमामि श्रीविहारिणम्।।८।।


यदा तदा यथा तथा तथैव कृष्णसत्कथा, मया सदैव गीयतां तथा कृपा विधीयताम्।

 प्रमाणिकाष्टकद्वयं जपत्यधीत्य यः पुमान्, भवेत्स नन्दनन्दने भवे भवे सुभक्तिमान॥९॥

Sunday, March 6, 2022

Rudrashtakam (श्रीरुद्राष्टकम्)

 नमामीशमीशान निर्वाणरूपं। विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपं।

निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं। चिदाकाशमाकाशवासं भजे हं॥1॥

Namam Meesana nirvana roopam,Vibhum vyapakam Brahma Veda swaroopam l

Nijam nirgunam nirvikalpam nireeham,Chidakasamaakasa vasam Bhajeham ॥1॥


व्याख्या - हे मोक्षस्वरूप, विभु, ब्रह्म और वेदस्वरूप, ईशान दिशा के ईश्वर व सबके स्वामी श्री शिव जी! मैं आपको नमस्कार करता हूँ. निजस्वरूप में स्थित अर्थात माया आदि से रहित, गुणों से रहित, भेद रहित, इच्छा रहित, चेतन आकाशरूप एवं आकाश को ही वस्त्र रूप में धारण करने वाले दिगम्बर आपको भजता हूँ ॥1॥

Meaning - I bow to the Ruler of the Universe, whose very form is Liberation, the omnipotent and all pervading Brahma, manifest as the Vedas. I worship Shiva, shining in his own glory, without physical qualities, Undifferentiated, desireless, all pervading sky of consciousness and wearing the sky itself as His garment. 1  

निराकारमोंकारमूलं तुरीयं। गिरा ग्यान गोतीतमीशं गिरीशं।

करालं महाकाल कालं कृपालं। गुणागार संसारपारं नतो हं॥2॥

Niraakara monkaara moolam thureeyam ,Giraa jnana gotheethamesam gireesam l

Karalam maha kala kalam krupalam,Gunaa gara samsara param athoham ॥2॥


व्याख्या - निराकार, ओंकार के मूल, तुरीय अर्थात तीनों गुणों से अतीत, वाणी, ज्ञान व इंद्रियों से परे, कैलाशपति, विकराल, महाकाल के भी काल, कृपालु, गुणों के धाम, संसार के परे आप परमेश्वर को मैं नमस्कार करता हूँ ॥2॥

Meaning - I bow to the supreme Lord who is the formless source of “Aum” The Self of All, transcending all conditions and states,Beyond speech, understanding and sense perception, Awe-full, but gracious, the ruler of Kailash, Devourer of Death, the immortal abode of all virtues. ||2||


तुषाराद्रि संकाश गौरं गम्भीरं। मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरं।

स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारु गंगा। लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजंगा॥3॥

Thushaaraadhi sankasa gowram gabheeram,Mano bhootha koti prabha sree sareeram l

Sphuran mouli kallolini charu ganga,Lasaddala balendu kante bhujanga.l॥3॥


व्याख्या - जो हिमाचल समान गौरवर्ण व गम्भीर हैं, जिनके शरीर में करोड़ों कामदेवों की ज्योति एवं शोभा है, जिनके सर पर सुंदर नदी गंगा जी विराजमान हैं, जिनके ललाट पर द्वितीय का चंद्रमा और गले में सर्प सुशोभित है ॥3॥

Meaning - I worship Shiva, whose form is white as the Himalyan snow, Radiant with the beauty of countless Cupids, Whose head sparkles with river Ganga. With crescent moon adorning his brow and snakes coiling his neck ॥3॥


चलत्कुण्डलं भ्रू सुनेत्रं विशालं। प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालं।

मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं। प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि॥4॥

Chalath kundalam bru sunethram vishaalam,Prasannananam neela kandam dhayalam l

Mrigadheesa charmambaeam munda malam Priyam shankaram sarva nadham bhajami ॥4॥


व्याख्या - जिनके कानों में कुण्डल हिल रहे हैं, सुंदर भृकुटि व विशाल नेत्र हैं, जो प्रसन्नमुख, नीलकंठ व दयालु हैं, सिंहचर्म धारण किये व मुंडमाल पहने हैं, उनके सबके प्यारे, उन सब के नाथ श्री शंकर को मैं भजता हूँ ॥4॥

Meaning - The beloved Lord of All, with shimmering pendants hanging from his ears, Beautiful eyebrows and large eyes, Full of Mercy with a cheerful countenance and a blue speck on his throat ॥4॥


प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं। अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशम्।

त्रय: शूल निर्मूलनं शूलपाणिं। भजे हं भवानीपतिं भावगम्यं॥5॥

Prachandam prakrushtam Prakalbham paresam,Akhandam ajam bhanu koti prakasam l

Thraya soola nirmoolanam soola panim,Bhajeham bhavani pathim bhava gamyam ॥5॥


व्याख्या - प्रचण्ड रुद्र रूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, परमेश्वर, अखण्ड, अजन्मा, करोड़ों सूर्यों के समान प्रकाश वाले, तीनों प्रकार के शूलों अर्थात दु:खों को निर्मूल करने वाले, हाथ में त्रिशूल धारण किये, प्रेम के द्वारा प्राप्त होने वाले भवानी के पति श्री शंकर को मैं भजता हूँ ॥5॥

Meaning - I worship Shankara, Bhavani’s husband,The fierce, exalted, luminous supreme Lord.Indivisible, unborn and radiant with the glory of a million suns; Who, holding a trident, tears out the root of the three-fold suffering,And who is reached only through Love ॥5॥


कलातीत कल्याण कल्पांतकारी। सदासज्जनानन्ददाता पुरारी।

चिदानन्द संदोह मोहापहारी। प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी॥6॥

Kalatheetha kalyani kalpanthakari,Sada sajjananda datha purari l

Chidananda sandoha mohapahari,Praseeda praseeda prabho mamamadhari ॥6॥


व्याख्या - कलाओं से परे, कल्याणस्वरूप, कल्प का अंत, प्रलय करने वाले, सज्जनों को सदा आनन्द देने वाले, त्रिपुर के शत्रु सच्चिनानंदमन, मोह को हरने वाले, प्रसन्न हों, प्रसन्न हों ॥6॥

Meaning - You who are without parts, ever blessed, The cause of universal destruction at the end of each round of creation, A source of perpetual delight to the pure of heart,Slayer of the demon, Tripura, consciousness and bliss personified, Dispeller of delusion Have mercy on me, foe of Lust ॥6॥


न यावद् उमानाथ पादारविंदं। भजंतीह लोके परे वा नराणां।

न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं। प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं॥7॥

Na yavad Umanada padaravindam ,Bhajantheeha loke pare vaa naraanaam l

Na thath sukham shanthi santhapa nasam,Praseedha prabho Sarva bhoothadhivasam l॥7॥


व्याख्या - हे पार्वती के पति, जब तक मनुष्य आपके चरण कमलों को नहीं भजते, तब तक उन्हें न तो इस लोक में न परलोक में सुख शान्ति मिलती है और न ही तापों का नाश होता है. अत: हे समस्त जीवों के अंदर निवास करने वाले प्रभो, प्रसन्न होइये ॥7॥

Meaning - Oh Lord of Uma, so long as you are not worshipped there is no happiness, peace or freedom from suffering in this world or the next. You who dwell in the hearts of all living beings, and in whom all beings have their existence, Have mercy on me, Lord ॥7॥


न जानामि योगं जपं नैव पूजां। नतो हं सदा सर्वदा शम्भु तुभ्यं।

जराजन्म दु:खौघ तातप्यमानं। प्रभो पाहि आपन्न्मामीश शंभो॥8॥


Na janami yogam, japam ,naiva poojaam,Nathoham sada sarvadha Shambhu thubhyam l

Jara janma dukhogha thathpyamanam,Prabho pahi aapannamameesa Shambho ॥8॥


व्याख्या - मैं न तो जप जानता हूँ, न तप और न ही पूजा. हे प्रभो, मैं तो सदा सर्वदा आपको ही नमन करता हूँ. हे प्रभो, बुढ़ापा व जन्म, मृत्यु, दु:खों से जलाये हुए मुझ दुखी की दुखों से रक्षा करें. हे ईश्वर, मैं आपको नमस्कार करता हूँ ॥8॥

Meaning - I don’t know yoga, prayer or rituals, But everywhere and at every moment, I bow to you, Shambhu ! Protect me my Lord, miserable and afflicted as I am with the sufferings of birth, old-age and death ॥8॥


रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये।

ये पठन्ति नरा भक्तया तेषां शम्भु: प्रसीदति॥

Rudhrashtakamidham proktham Viprena hara thoshaye l

Ye padanthi naraa bhakthya thesham Shambhu praseedathi ll


व्याख्या - भगवान रुद्र का यह अष्टक उन शंकर जी की स्तुति के लिये है जो मनुष्य इसे प्रेमस्वरूप पढ़ते हैं, श्रीशंकर उन से प्रसन्न होते हैं

Meaning - Lord Rudra’s this ashtakam is for the worship of supreme lord Shiva. The person who chants / reads ashtakam Lord Shiva remains happy with him.


इति श्री गोस्वामी तुलसिदास कृतम श्रीरुद्राश्ह्टकम संपूर्णम॥

Wednesday, March 2, 2022

श्री सरस्वती अष्टोत्तर शतनामावली स्तोत्रम


                                         

 सरस्वती महाभद्रा महामाया वरप्रदा । श्रीप्रदा पद्मनिलया पद्माक्षी पद्मवक्त्रका ॥ १॥

शिवानुजा पुस्तकभृत् ज्ञानमुद्रा रमा परा । कामरूपा महाविद्या महापातकनाशिनी ॥ २॥

महाश्रया मालिनी च महाभोगा महाभुजा । महाभागा महोत्साहा दिव्याङ्गा सुरवन्दिता ॥ ३॥

महाकाली महापाशा महाकारा महाङ्कुशा । पीता च विमला विश्वा विद्युन्माला च वैष्णवी ॥ ४॥

चन्द्रिका चन्द्रवदना चन्द्रलेखाविभूषिता । सावित्री सुरसा देवी दिव्यालङ्कारभूषिता ॥ ५॥

वाग्देवी वसुधा तीव्रा महाभद्रा महाबला । भोगदा भारती भामा गोविन्दा गोमती शिवा ॥ ६॥

जटिला विन्ध्यवासा च विन्ध्याचलविराजिता । चण्डिका वैष्णवी ब्राह्मी ब्रह्मज्ञानैकसाधना ॥ ७॥

सौदामिनी सुधामूर्तिस्सुभद्रा सुरपूजिता । सुवासिनी सुनासा च विनिद्रा पद्मलोचना ॥ ८॥

विद्यारूपा विशालाक्षी ब्रह्मजाया महाफला । त्रयीमूर्तिः त्रिकालज्ञा त्रिगुणा शास्त्ररूपिणी ॥ ९॥

शुम्भासुरप्रमथिनी शुभदा च स्वरात्मिका । रक्तबीजनिहंत्री च चामुण्डा चाम्बिका तथा ॥ १०॥

मुण्डकायप्रहरणा धूम्रलोचनमर्दना । सर्वदेवस्तुता सौम्या सुरासुरनमस्कृता ॥ ११॥

कालरात्री कलाधारा रूपसौभाग्यदायिनी । वाग्देवी च वरारोहा वाराही वारिजासना ॥ १२॥

चित्राम्बरा चित्रगन्धा चित्रमाल्यविभूषिता । कान्ता कामप्रदा वन्द्या विद्याधरसुपूजिता ॥ १३॥

विद्याधरी सुपूजिता श्वेतानना नीलभुजा चतुर्वर्गफलप्रदा । चतुराननसाम्राज्या रक्तमद्या निरञ्जना ॥ १४॥

हंसासना नीलजङ्घा ब्रह्मविष्णुशिवात्मिका । एवं सरस्वतीदेव्या नाम्नामष्टोत्तरं शतम् ॥१५॥



इति श्री सरस्वत्यष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम् सम्पूर्णम्सरस्वत्यष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम् सम्पूर्णम् ॥

Tuesday, March 1, 2022

Shiva Ashtottara Shatanama Stotram(शिव अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम)




 शिवो महेश्वरः शम्भुः पिनाकी शशिशेखरः ।

वामदेवो विरूपाक्षः कपर्दी नीललोहितः ॥१॥


शङ्करः शूलपाणिश्च खट्वाङ्गी विष्णुवल्लभः ।

शिपिविष्टोऽम्बिकानाथः श्रीकण्ठो भक्तवत्सलः ॥२॥


भवः शर्वस्त्रिलोकेशः शितिकण्टः शिवाप्रियः ।

उग्रः कपाली कामारिरन्धकासुरसूदनः ॥२॥


गङ्गाधरो ललाटाक्षः कालकालः कृपानिधिः ।

भीमः परशुहस्तश्च मृगपाणिर्जटाधरः ॥४॥


कैलासवासी कवची कठोरस्त्रिपुरान्तकः ।

वृषाङ्की वृषभारूढो भस्मोद्धूलितविग्रहः ॥५॥


सामप्रियः स्वरमयस्त्रयीमूर्तिरनीश्वरः ।

सर्वज्ञः परमात्मा च सोमसूर्याग्निलोचनः ॥६॥


हविर्यज्ञमयः सोमः पञ्चवक्त्रः सदाशिवः ।

विश्वेश्वरो वीरभद्रो गणनाथः प्रजापतिः ॥७॥


हिरण्यरेता दुर्धर्षो गिरीशो गिरिशोऽनघः ।

भुजङ्गभूषणो भर्गो गिरिधन्वा गिरिप्रियः ॥८॥


कृत्तिवासाः पुरारातिर्भगवान प्रमथाधिपः ।

मृत्युञ्जयः सूक्ष्मतनुर्जगद्व्यापी जगद्गुरुः ॥९॥


व्योमकेशो महासेनजनकश्चारुविक्रमः ।

रुद्रो भूतपतिः स्ताणुरहिर्बुध्न्यो दिगम्बरः ॥१०॥


अष्टमूर्तिरनेकात्मा सात्विकः शुद्धविग्रहः ।

शाश्वतः खण्डपरशू रजःपाशविमोचनः ॥११॥


मृडः पशुपतिर्देवो महादेवोऽव्ययो हरिः ।

पूषदन्तभिदव्यग्रो दक्षाध्वरहरो हरः ॥१२॥


भगनेत्रभिदव्यक्तः सहस्राक्षः सहस्रपात ।

अपवर्गप्रदोऽनन्तस्तारकः परमेश्वरः ॥१३॥


इति श्रीशिवाष्टोत्तरशतनामावळिस्तोत्रं संपूर्णम 

Saturday, February 26, 2022

Shiv Tandav Stotram


 

जटाटवी गलज्जल प्रवाह पावित स्थले

गलेऽव लम्ब्य लम्बिताम भुजंग तुंग मालिकाम्‌ |

डमड्ड मड्ड मड्ड मन्नी नाद वड्ड मर्वयम

चकार चंडतांडवम तनोतु नः शिवः शिवम || 1 ||


जटा कटा हसम भ्रमम भ्रमन्नि लिंपनिर्झरी

विलोलवी चिवल्लरी विराजमान मूर्धनि ||

धगद्धगद्ध गज्ज्वलल्ल ललाट पट्टपावके

किशोर चंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं ममम || 2 ||


धरा धरेंद्र नंदिनी विलास बंधु बंधुर-

स्फुरदृगंत संतति प्रमोद मान मानसे ||

कृपा कटाक्ष धारणी निरुद्ध दुर्धरापदि

कवचिद दिगम्बरे मनो विनोद मेतु वस्तुनि || 3 ||


जटा भुजं गपिंगल स्फुरत्फणा मणिप्रभा-

कदंब कुंकुम द्रवप्रलिप्त दिग्व धूमुखे ||

मदांध सिंधु रस्फुरत्व गुत्तरीय मेदुरे

मनो विनोदद्भुतं बिंभर्तु भूतभर्तरि || 4 ||


सहस्र लोचन प्रभृत्य शेषलेखशेखर-

प्रसून धूलिधोरणी विधूसरांघ्रि पीठभूः ||

भुजंगराज मालया निबद्ध जाटजूटकः

श्रिये चिराय जायतां चकोर बंधुशेखरः || 5 ||


ललाट चत्वरज्वलद्धनंजय स्फुरिगभा-

निपीत पंचसायकम निमन्निलिंप नायम्‌ ||

सुधा मयुख लेखया विराज मानशेखरं

महा कपालि संपदे शिरोजया लमस्तू नः || 6 ||


कराल भाल पट्टिका धगद्धगद्धगज्ज्वल-

द्धनंजया धरीकृत प्रचंड पंचसायके ।

धराधरेंद्र नंदिनी कुचाग्र चित्र पत्रक-

प्रकल्प नैक शिल्पिनि त्रिलोचने मतिर्मम || 7 ||


नवीन मेघ मंडली निरुद्धदुर्ध रस्फुर-

त्कुहु निशीथि नीतमः प्रबंध बंधु कंधरः ||

निलिम्प निर्झरि धरस्तनोतु कृत्ति सिंधुरः

कला निधान बंधुरः श्रियं जगंद्धुरंधरः || 8 ||


प्रफुल्ल नील पंकज प्रपंच कालि मच्छटा-

विडंबि कंठकंध रारुचि प्रबंध कंधरम्‌ ||

स्मरच्छिदं पुरच्छिंद भवच्छिदं मखच्छिदं

गजच्छिदांध कच्छिदं तमंत कच्छिदं भजे || 9 ||


अखर्व सर्वमंगला कला कदम्बमंजरी-

रसप्रवाह माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम्‌ ||

स्मरांतकं पुरातकं भावंतकं मखांतकं

गजांत कांध कांतकं तमंत कांतकं भजे || 10 ||


जयत्वद भ्रविभ्रम भ्रमद्भुजंग मश्वसद,

विनिर्ग मक्र मस्फुरत्कराल भाल हव्यवाट्,

धिमिन्ध मिधि मिन्ध्व नन्मृदंग तुंगमंगल-

ध्वनि क्रम प्रवर्तित प्रचण्ड ताण्डवः शिवः || 11 ||


दृषद्विचित्र तल्पयोर्भुजंग मौक्तिकम स्रजो-

र्गरिष्ठरत्न लोष्टयोः सुहृद्विपक्ष पक्षयोः ||

तृणार विंद चक्षुषोः प्रजा मही महेन्द्रयोः

समं प्रवर्तयन्मनः कदा सदाशिवं भजे || 12 ||


कदा निलिं पनिर्झरी निकुज कोटरे वसन्‌

विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमंजलिं वहन्‌।

विमुक्त लोल लोचनो ललाम भाल लग्नकः

शिवेति मंत्रमुच्चरन्‌कदा सुखी भवाम्यहम्‌ || 13 ||


निलिम्प नाथनागरी कदम्ब मौलमल्लिका-

निगुम्फ निर्भक्षरन्म धूष्णिका मनोहरः ||

तनोतु नो मनोमुदं विनोदिनीं महनिशं

परिश्रय परं पदं तदंगजत्विषां चयः || 14 ||


प्रचण्ड वाडवानल प्रभाशुभप्रचारणी

महाष्ट सिद्धि कामिनी जनावहूत जल्पना ||

विमुक्त वाम लोचनो विवाह कालिक ध्वनिः

शिवेति मन्त्रभूषगो जगज्जयाय जायताम्‌ || 15 ||


इमं हि नित्यमेव मुक्तमुक्तमोत्तम स्तवं

पठन्स्मरन्‌ ब्रुवन्नरो विशुद्धमेति संततम्‌ ||

हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नांयथा गतिं

विमोहनं हि देहना तु शंकरस्य चिंतनम || 16 ||


पूजाऽवसानसमये दशवक्रत्रगीतं

यः शम्भूपूजनमिदं पठति प्रदोषे ||

तस्य स्थिरां रथगजेंद्रतुरंगयुक्तां

लक्ष्मी सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भुः || 17 ||


|| इति शिव तांडव स्तोत्रं संपूर्णम्‌ ||

Thursday, February 24, 2022

Mahishasura Mardini

 



अयि गिरिनन्दिनि नन्दितमेदिनि विश्वविनोदिनि नन्दिनुते

गिरिवरविन्ध्यशिरोऽधिनिवासिनि विष्णुविलासिनि जिष्णुनुते ।

भगवति हे शितिकण्ठकुटुम्बिनि भूरिकुटुम्बिनि भूरिकृते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १ ॥


सुरवरवर्षिणि दुर्धरधर्षिणि दुर्मुखमर्षिणि हर्षरते

त्रिभुवनपोषिणि शङ्करतोषिणि किल्बिषमोषिणि घोषरते

दनुजनिरोषिणि दितिसुतरोषिणि दुर्मदशोषिणि सिन्धुसुते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ २ ॥


अयि जगदम्ब मदम्ब कदम्ब वनप्रियवासिनि हासरते

शिखरि शिरोमणि तुङ्गहिमलय शृङ्गनिजालय मध्यगते ।

मधुमधुरे मधुकैटभगञ्जिनि कैटभभञ्जिनि रासरते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ३ ॥


अयि शतखण्ड विखण्डितरुण्ड वितुण्डितशुण्द गजाधिपते

रिपुगजगण्ड विदारणचण्ड पराक्रमशुण्ड मृगाधिपते ।

निजभुजदण्ड निपातितखण्ड विपातितमुण्ड भटाधिपते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ४ ॥


अयि रणदुर्मद शत्रुवधोदित दुर्धरनिर्जर शक्तिभृते

चतुरविचार धुरीणमहाशिव दूतकृत प्रमथाधिपते ।

दुरितदुरीह दुराशयदुर्मति दानवदुत कृतान्तमते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ५ ॥


अयि शरणागत वैरिवधुवर वीरवराभय दायकरे

त्रिभुवनमस्तक शुलविरोधि शिरोऽधिकृतामल शुलकरे ।

दुमिदुमितामर धुन्दुभिनादमहोमुखरीकृत दिङ्मकरे

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ६ ॥


अयि निजहुङ्कृति मात्रनिराकृत धूम्रविलोचन धूम्रशते

समरविशोषित शोणितबीज समुद्भवशोणित बीजलते ।

शिवशिवशुम्भ निशुम्भमहाहव तर्पितभूत पिशाचरते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ७ ॥


धनुरनुषङ्ग रणक्षणसङ्ग परिस्फुरदङ्ग नटत्कटके

कनकपिशङ्ग पृषत्कनिषङ्ग रसद्भटशृङ्ग हताबटुके ।

कृतचतुरङ्ग बलक्षितिरङ्ग घटद्बहुरङ्ग रटद्बटुके

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ८ ॥


सुरललना ततथेयि तथेयि कृताभिनयोदर नृत्यरते

कृत कुकुथः कुकुथो गडदादिकताल कुतूहल गानरते ।

धुधुकुट धुक्कुट धिंधिमित ध्वनि धीर मृदंग निनादरते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ९ ॥


जय जय जप्य जयेजयशब्द परस्तुति तत्परविश्वनुते

झणझणझिञ्झिमि झिङ्कृत नूपुरशिञ्जितमोहित भूतपते ।

नटित नटार्ध नटी नट नायक नाटितनाट्य सुगानरते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १० ॥


अयि सुमनःसुमनःसुमनः सुमनःसुमनोहरकान्तियुते

श्रितरजनी रजनीरजनी रजनीरजनी करवक्त्रवृते ।

सुनयनविभ्रमर भ्रमरभ्रमर भ्रमरभ्रमराधिपते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ११ ॥


सहितमहाहव मल्लमतल्लिक मल्लितरल्लक मल्लरते

विरचितवल्लिक पल्लिकमल्लिक झिल्लिकभिल्लिक वर्गवृते ।

शितकृतफुल्ल समुल्लसितारुण तल्लजपल्लव सल्ललिते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १२ ॥


अविरलगण्ड गलन्मदमेदुर मत्तमतङ्ग जराजपते

त्रिभुवनभुषण भूतकलानिधि रूपपयोनिधि राजसुते ।

अयि सुदतीजन लालसमानस मोहन मन्मथराजसुते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १३ ॥


कमलदलामल कोमलकान्ति कलाकलितामल भाललते

सकलविलास कलानिलयक्रम केलिचलत्कल हंसकुले ।

अलिकुलसङ्कुल कुवलयमण्डल मौलिमिलद्बकुलालिकुले

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १४ ॥


करमुरलीरव वीजितकूजित लज्जितकोकिल मञ्जुमते

मिलितपुलिन्द मनोहरगुञ्जित रञ्जितशैल निकुञ्जगते ।

निजगणभूत महाशबरीगण सद्गुणसम्भृत केलितले

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १५ ॥


कटितटपीत दुकूलविचित्र मयुखतिरस्कृत चन्द्ररुचे

प्रणतसुरासुर मौलिमणिस्फुर दंशुलसन्नख चन्द्ररुचे

जितकनकाचल मौलिमदोर्जित निर्भरकुञ्जर कुम्भकुचे

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १६ ॥


विजितसहस्रकरैक सहस्रकरैक सहस्रकरैकनुते

कृतसुरतारक सङ्गरतारक सङ्गरतारक सूनुसुते ।

सुरथसमाधि समानसमाधि समाधिसमाधि सुजातरते ।

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १७ ॥


पदकमलं करुणानिलये वरिवस्यति योऽनुदिनं सुशिवे

अयि कमले कमलानिलये कमलानिलयः स कथं न भवेत् ।

तव पदमेव परम्पदमित्यनुशीलयतो मम किं न शिवे

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १८ ॥


कनकलसत्कलसिन्धुजलैरनुषिञ्चति तेगुणरङ्गभुवम्

भजति स किं न शचीकुचकुम्भतटीपरिरम्भसुखानुभवम् ।

तव चरणं शरणं करवाणि नतामरवाणि निवासि शिवम्

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १९ ॥


तव विमलेन्दुकुलं वदनेन्दुमलं सकलं ननु कूलयते

किमु पुरुहूतपुरीन्दु मुखी सुमुखीभिरसौ विमुखीक्रियते ।

मम तु मतं शिवनामधने भवती कृपया किमुत क्रियते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ २० ॥


अयि मयि दीन दयालुतया कृपयैव त्वया भवितव्यमुमे

अयि जगतो जननी कृपयासि यथासि तथानुमितासिरते ।

यदुचितमत्र भवत्युररीकुरुतादुरुतापमपाकुरुते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ २१ ॥      

Wednesday, February 23, 2022

Shri Ram Raksha Satotram



|| विनियोग: ||

अस्य श्रीरामरक्षास्तोत्रमन्त्रस्य , बुधकौशिक ऋषि: |

  श्रीसीतारामचंद्रोदेवता | अनुष्टुप् छन्द: । सीता शक्ति: ।

श्रीमान हनुमान् कीलकम् ।  श्रीसीतारामचंद्रप्रीत्यर्थे जपे विनियोग: ॥

अर्थ : इस राम रक्षा स्तोत्र मंत्र के रचयिता बुध कौशिक ऋषि हैं, सीता और रामचंद्र देवता हैं, अनुष्टुप छंद हैं, सीता शक्ति हैं, हनुमान जी कीलक है तथा श्री रामचंद्र जी की प्रसन्नता के लिए राम रक्षा स्तोत्र के जप में विनियोग किया जाता हैं |

॥ अथ ध्यानम् ॥

ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्धपद्‌मासनस्थं । पीतं वासोवसानं नवकमलदलस्पर्धिनेत्रं प्रसन्नम् ॥

वामाङ्‌कारूढ-सीता-मुखकमल-मिलल्लोचनं नीरदाभं । नानालङ्‌कारदीप्तं दधतमुरुजटामण्डनं रामचंद्रम् ॥

अर्थ : ध्यान धरिए — जो धनुष-बाण धारण किए हुए हैं,बद्द पद्मासन की मुद्रा में विराजमान हैं और पीतांबर पहने हुए हैं, जिनके आलोकित नेत्र नए कमल दल के समान स्पर्धा करते हैं, जो बाएँ ओर स्थित सीताजी के मुख कमल से मिले हुए हैं- उन आजानु बाहु, मेघश्याम,विभिन्न अलंकारों से विभूषित तथा जटाधारी श्रीराम का ध्यान करें |

॥ इति ध्यानम् ॥

चरितं रघुनाथस्य शतकोटिप्रविस्तरम् । एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम् ॥१॥

अर्थ : श्री रघुनाथजी का चरित्र सौ करोड़ विस्तार वाला हैं | उसका एक-एक अक्षर महापातकों को नष्ट करने वाला है |

ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं रामं राजीवलोचनम् । जानकीलक्ष्मणोपेतं जटामुकुटमण्डितम् ॥२॥

अर्थ : नीले कमल के श्याम वर्ण वाले, कमलनेत्र वाले , जटाओं के मुकुट से सुशोभित, जानकी तथा लक्ष्मण सहित ऐसे भगवान् श्री राम का स्मरण करके,

सासितूणधनुर्बाणपाणिं नक्तं चरान्तकम् । स्वलीलया जगत्त्रातुमाविर्भूतमजं विभुम् ॥३॥

अर्थ : जो अजन्मा एवं सर्वव्यापक, हाथों में खड्ग, तुणीर, धनुष-बाण धारण किए राक्षसों के संहार तथा अपनी लीलाओं से जगत रक्षा हेतु अवतीर्ण श्रीराम का स्मरण करके,

रामरक्षां पठेत्प्राज्ञ: पापघ्नीं सर्वकामदाम् । शिरो मे राघव: पातु भालं दशरथात्मज: ॥४॥

अर्थ : मैं सर्वकामप्रद और पापों को नष्ट करने वाले राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करता हूँ | राघव मेरे सिर की और दशरथ के पुत्र मेरे ललाट की रक्षा करें |

कौसल्येयो दृशौ पातु विश्वामित्रप्रिय: श्रुती । घ्राणं पातु मखत्राता मुखं सौमित्रिवत्सल: ॥५॥

अर्थ : कौशल्या नंदन मेरे नेत्रों की, विश्वामित्र के प्रिय मेरे कानों की, यज्ञरक्षक मेरे घ्राण की और सुमित्रा के वत्सल मेरे मुख की रक्षा करें |

जिव्हां विद्यानिधि: पातु कण्ठं भरतवंदित: । स्कन्धौ दिव्यायुध: पातु भुजौ भग्नेशकार्मुक: ॥६॥

अर्थ : मेरी जिह्वा की विधानिधि रक्षा करें, कंठ की भरत-वंदित, कंधों की दिव्यायुध और भुजाओं की महादेवजी का धनुष तोड़ने वाले भगवान् श्रीराम रक्षा करें |

करौ सीतापति: पातु हृदयं जामदग्न्यजित् । मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिं जाम्बवदाश्रय: ॥७॥

अर्थ : मेरे हाथों की सीता पति श्रीराम रक्षा करें, हृदय की जमदग्नि ऋषि के पुत्र (परशुराम) को जीतने वाले, मध्य भाग की खर (नाम के राक्षस) के वधकर्ता और नाभि की जांबवान के आश्रयदाता रक्षा करें |

सुग्रीवेश: कटी पातु सक्थिनी हनुमत्प्रभु: । ऊरू रघुत्तम: पातु रक्ष:कुलविनाशकृत् ॥८॥

अर्थ : मेरे कमर की सुग्रीव के स्वामी, हडियों की हनुमान के प्रभु और रानों की राक्षस कुल का विनाश करने वाले रघुश्रेष्ठ रक्षा करें |

जानुनी सेतुकृत्पातु जङ्‌घे दशमुखान्तक: । पादौ बिभीषणश्रीद: पातु रामोखिलं वपु: ॥९॥

अर्थ : मेरे जानुओं की सेतुकृत, जंघाओं की दशानन वधकर्ता, चरणों की विभीषण को ऐश्वर्य प्रदान करने वाले और सम्पूर्ण शरीर की श्रीराम रक्षा करें |

एतां रामबलोपेतां रक्षां य: सुकृती पठॆत् । स चिरायु: सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत् ॥१०॥

अर्थ : शुभ कार्य करने वाला जो भक्त भक्ति एवं श्रद्धा के साथ रामबल से संयुक्त होकर इस स्तोत्र का पाठ करता हैं, वह दीर्घायु, सुखी, पुत्रवान, विजयी और विनयशील हो जाता हैं |

पातालभूतलव्योम चारिणश्छद्‌मचारिण: । न द्र्ष्टुमपि शक्तास्ते रक्षितं रामनामभि: ॥११॥

अर्थ : जो जीव पाताल, पृथ्वी और आकाश में विचरते रहते हैं अथवा छद्दम वेश में घूमते रहते हैं , वे राम नामों से सुरक्षित मनुष्य को देख भी नहीं पाते |

रामेति रामभद्रेति रामचंद्रेति वा स्मरन् । नरो न लिप्यते पापै भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति ॥१२॥

अर्थ : राम, रामभद्र तथा रामचंद्र आदि नामों का स्मरण करने वाला रामभक्त पापों से लिप्त नहीं होता. इतना ही नहीं, वह अवश्य ही भोग और मोक्ष दोनों को प्राप्त करता है |

जगज्जेत्रैकमन्त्रेण रामनाम्नाभिरक्षितम् । य: कण्ठे धारयेत्तस्य करस्था: सर्वसिद्धय: ॥१३॥

अर्थ : जो संसार पर विजय करने वाले मंत्र राम-नाम से सुरक्षित इस स्तोत्र को कंठस्थ कर लेता हैं, उसे सम्पूर्ण सिद्धियाँ प्राप्त हो जाती हैं |

वज्रपंजरनामेदं यो रामकवचं स्मरेत् । अव्याहताज्ञ: सर्वत्र लभते जयमंगलम् ॥१४॥

अर्थ : जो मनुष्य वज्रपंजर नामक इस राम कवच का स्मरण करता हैं, उसकी आज्ञा का कहीं भी उल्लंघन नहीं होता तथा उसे सदैव विजय और मंगल की ही प्राप्ति होती हैं |

आदिष्टवान् यथा स्वप्ने रामरक्षामिमां हर: । तथा लिखितवान् प्रात: प्रबुद्धो बुधकौशिक: ॥१५॥

अर्थ : भगवान् शंकर ने स्वप्न में इस रामरक्षा स्तोत्र का आदेश बुध कौशिक ऋषि को दिया था, उन्होंने प्रातः काल जागने पर उसे वैसा ही लिख दिया |

आराम: कल्पवृक्षाणां विराम: सकलापदाम् । अभिरामस्त्रिलोकानां राम: श्रीमान् स न: प्रभु: ॥१६॥

अर्थ : जो कल्प वृक्षों के बगीचे के समान विश्राम देने वाले हैं, जो समस्त विपत्तियों को दूर करने वाले हैं (विराम माने थमा देना, किसको थमा देना/दूर कर देना ? सकलापदाम = सकल आपदा = सारी विपत्तियों को) और जो तीनो लोकों में सुंदर हैं, वही श्रीमान राम हमारे प्रभु हैं |

तरुणौ रूपसंपन्नौ सुकुमारौ महाबलौ । पुण्डरीकविशालाक्षौ चीरकृष्णाजिनाम्बरौ ॥१७॥

अर्थ : जो युवा,सुन्दर, सुकुमार,महाबली और कमल (पुण्डरीक) के समान विशाल नेत्रों वाले हैं, मुनियों की तरह वस्त्र एवं काले मृग का चर्म धारण करते हैं |

फलमूलशिनौ दान्तौ तापसौ ब्रह्मचारिणौ । पुत्रौ दशरथस्यैतौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ ॥१८॥

अर्थ : जो फल और कंद का आहार ग्रहण करते हैं, जो संयमी , तपस्वी एवं ब्रह्रमचारी हैं , वे दशरथ के पुत्र राम और लक्ष्मण दोनों भाई हमारी रक्षा करें |

शरण्यौ सर्वसत्वानां श्रेष्ठौ सर्वधनुष्मताम् । रक्ष:कुलनिहन्तारौ त्रायेतां नो रघुत्तमौ ॥१९॥

अर्थ : ऐसे महाबली – रघुश्रेष्ठ मर्यादा पुरूषोतम समस्त प्राणियों के शरणदाता, सभी धनुर्धारियों में श्रेष्ठ और राक्षसों के कुलों का समूल नाश करने में समर्थ हमारा त्राण करें |

आत्तसज्जधनुषा विषुस्पृशा वक्षया शुगनिषङ्ग सङि‌गनौ । रक्षणाय मम रामलक्ष्मणावग्रत: पथि सदैव गच्छताम् ॥२०॥

अर्थ : संघान किए धनुष धारण किए, बाण का स्पर्श कर रहे, अक्षय बाणों से युक्त तुणीर लिए हुए राम और लक्ष्मण मेरी रक्षा करने के लिए मेरे आगे चलें |

संनद्ध: कवची खड्‌गी चापबाणधरो युवा । गच्छन्‌ मनोरथोSस्माकं राम: पातु सलक्ष्मण: ॥२१॥

अर्थ : हमेशा तत्पर, कवचधारी, हाथ में खडग, धनुष-बाण तथा युवावस्था वाले भगवान् राम लक्ष्मण सहित आगे-आगे चलकर हमारी रक्षा करें |

रामो दाशरथि: शूरो लक्ष्मणानुचरो बली । काकुत्स्थ: पुरुष: पूर्ण: कौसल्येयो रघुत्तम: ॥२२॥

अर्थ : भगवान् का कथन है की श्रीराम, दाशरथी, शूर, लक्ष्मनाचुर, बली, काकुत्स्थ , पुरुष, पूर्ण, कौसल्येय, रघुतम,

वेदान्तवेद्यो यज्ञेश: पुराणपुरुषोत्तम: । जानकीवल्लभ: श्रीमानप्रमेयपराक्रम: ॥२३॥

अर्थ : वेदान्त्वेघ, यज्ञेश,पुराण पुरूषोतम , जानकी वल्लभ, श्रीमान और अप्रमेय पराक्रम आदि नामों का

इत्येतानि जपेन्नित्यं मद्‌भक्त: श्रद्धयान्वित: । अश्वमेधाधिकं पुण्यं संप्राप्नोति न संशय: ॥२४॥

अर्थ : नित्यप्रति श्रद्धापूर्वक जप करने वाले को निश्चित रूप से अश्वमेध यज्ञ से भी अधिक फल प्राप्त होता हैं |

रामं दूर्वादलश्यामं पद्‌माक्षं पीतवाससम् । स्तुवन्ति नामभिर्दिव्यैर्न ते संसारिणो नर: ॥२५॥

अर्थ : दूर्वादल के समान श्याम वर्ण, कमल-नयन एवं पीतांबरधारी श्रीराम की उपरोक्त दिव्य नामों से स्तुति करने वाला संसारचक्र में नहीं पड़ता |

रामं लक्ष्मण-पूर्वजं रघुवरं सीतापतिं सुंदरम् । काकुत्स्थं करुणार्णवं गुणनिधिं विप्रप्रियं धार्मिकम् ।

राजेन्द्रं सत्यसंधं दशरथनयं श्यामलं शान्तमूर्तिम् । वन्दे लोकभिरामं रघुकुलतिलकं राघवं रावणारिम् ॥२६॥

अर्थ : लक्ष्मण जी के पूर्वज , सीताजी के पति, काकुत्स्थ, कुल-नंदन, करुणा के सागर , गुण-निधान , विप्र भक्त, परम धार्मिक , राजराजेश्वर, सत्यनिष्ठ, दशरथ के पुत्र, श्याम और शांत मूर्ति, सम्पूर्ण लोकों में सुन्दर, रघुकुल तिलक , राघव एवं रावण के शत्रु भगवान् राम की मैं वंदना करता हूँ |

रामाय रामभद्राय रामचंद्राय वेधसे । रघुनाथाय नाथाय सीताया: पतये नम: ॥२७॥

अर्थ : राम, रामभद्र, रामचंद्र, विधात स्वरूप , रघुनाथ, प्रभु एवं सीताजी के स्वामी की मैं वंदना करता हूँ |

श्रीराम राम रघुनन्दन राम राम । श्रीराम राम भरताग्रज राम राम ।

श्रीराम राम रणकर्कश राम राम । श्रीराम राम शरणं भव राम राम ॥२८॥

अर्थ : हे रघुनन्दन श्रीराम ! हे भरत के अग्रज भगवान् राम! हे रणधीर, मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ! आप मुझे शरण दीजिए |

श्रीरामचन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि । श्रीरामचन्द्रचरणौ वचसा गृणामि ।

श्रीरामचन्द्रचरणौ शिरसा नमामि । श्रीरामचन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये ॥२९॥

अर्थ : मैं एकाग्र मन से श्रीरामचंद्रजी के चरणों का स्मरण और वाणी से गुणगान करता हूँ, वाणी द्धारा और पूरी श्रद्धा के साथ भगवान् रामचन्द्र के चरणों को प्रणाम करता हुआ मैं उनके चरणों की शरण लेता हूँ |

माता रामो मत्पिता रामचन्द्र: । स्वामी रामो मत्सखा रामचन्द्र: ।

सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयालुर् । नान्यं जाने नैव जाने न जाने ॥३०॥

अर्थ : श्रीराम मेरे माता, मेरे पिता , मेरे स्वामी और मेरे सखा हैं | इस प्रकार दयालु श्रीराम मेरे सर्वस्व हैं. उनके सिवा में किसी दुसरे को नहीं जानता |

दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे च जनकात्मजा । पुरतो मारुतिर्यस्य तं वन्दे रघुनंदनम् ॥३१॥

अर्थ : जिनके दाईं और लक्ष्मण जी, बाईं और जानकी जी और सामने हनुमान ही विराजमान हैं, मैं उन्ही रघुनाथ जी की वंदना करता हूँ |

लोकाभिरामं रणरङ्‌गधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम् । कारुण्यरूपं करुणाकरन्तं श्रीरामचन्द्रं शरणं प्रपद्ये ॥३२॥

अर्थ : मैं सम्पूर्ण लोकों में सुन्दर तथा रणक्रीड़ा में धीर, कमलनेत्र, रघुवंश नायक, करुणा की मूर्ति और करुणा के भण्डार की श्रीराम की शरण में हूँ |

मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम् । वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये ॥३३॥

अर्थ : जिनकी गति मन के समान और वेग वायु के समान (अत्यंत तेज) है, जो परम जितेन्द्रिय एवं बुद्धिमानों में श्रेष्ठ हैं, मैं उन पवन-नंदन वानारग्रगण्य श्रीराम दूत की शरण लेता हूँ |

कूजन्तं राम-रामेति मधुरं मधुराक्षरम् । आरुह्य कविताशाखां वन्दे वाल्मीकिकोकिलम् ॥३४॥

अर्थ : मैं कवितामयी डाली पर बैठकर, मधुर अक्षरों वाले ‘राम-राम’ के मधुर नाम को कूजते हुए वाल्मीकि रुपी कोयल की वंदना करता हूँ |

आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसंपदाम् । लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम् ॥३५॥

अर्थ : मैं इस संसार के प्रिय एवं सुन्दर उन भगवान् राम को बार-बार नमन करता हूँ, जो सभी आपदाओं को दूर करने वाले तथा सुख-सम्पति प्रदान करने वाले हैं |

भर्जनं भवबीजानामर्जनं सुखसंपदाम् । तर्जनं यमदूतानां रामरामेति गर्जनम् ॥३६॥

अर्थ : ‘राम-राम’ का जप करने से मनुष्य के सभी कष्ट समाप्त हो जाते हैं | वह समस्त सुख-सम्पति तथा ऐश्वर्य प्राप्त कर लेता हैं | राम-राम की गर्जना से यमदूत सदा भयभीत रहते हैं |

रामो राजमणि: सदा विजयते रामं रमेशं भजे । रामेणाभिहता निशाचरचमू रामाय तस्मै नम: ।

रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोऽस्म्यहम् । रामे चित्तलय: सदा भवतु मे भो राम मामुद्धर ॥३७॥

अर्थ : राजाओं में श्रेष्ठ श्रीराम सदा विजय को प्राप्त करते हैं | मैं लक्ष्मीपति भगवान् श्रीराम का भजन करता हूँ | सम्पूर्ण राक्षस सेना का नाश करने वाले श्रीराम को मैं नमस्कार करता हूँ | श्रीराम के समान अन्य कोई आश्रयदाता नहीं | मैं उन शरणागत वत्सल का दास हूँ | मैं हमेशा श्रीराम मैं ही लीन रहूँ | हे श्रीराम! आप मेरा (इस संसार सागर से) उद्धार करें |

राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे । सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ॥३८॥

अर्थ : (शिव पार्वती से बोले –) हे सुमुखी ! राम- नाम ‘विष्णु सहस्त्रनाम’ के समान हैं | मैं सदा राम का स्तवन करता हूँ और राम-नाम में ही रमण करता हूँ |

इति श्रीबुधकौशिकविरचितं श्रीरामरक्षास्तोत्रं संपूर्णम् ॥ 

॥ श्री सीतारामचंद्रार्पणमस्तु ॥